Home धर्म संसार महाभारत कर्ण – Mahabharat Karna | Story of Suryaputra Karn

महाभारत कर्ण – Mahabharat Karna | Story of Suryaputra Karn

दोस्तों क्या आप सूर्यपुत्र कर्ण के बारेमे जानना चाहते हो ? तो आप बहुत ही अच्छी ब्लॉग पर आये है इस ब्लॉग पर सूर्यपुत्र कर्ण से जुड़ी हुई सभी जानकारी आपको मिल जाएगी।

महाभारत के वीर योद्धा में एक कर्ण जिसे हम आज  दान वीर के नाम से भी जानते हे|

कर्ण का जन्म दुर्वासा ऋषि के दिए गए वरदान से हुवा था| दुर्वासा ऋषि जब कुंती के महल में गए थे तब कुंती ने उनकी एक वर्ष तक सेवा की थी जिस से प्रसन्न होकर दुर्वासा ऋषि ने कुंती को एक मंत्र दीया था  जिस मंत्र से वह  देवोंके पास से पुत्र प्राप्त कर सके |          

दुर्वासा ऋषि जानते थे की कुन्ती का विवाह हस्तिनापुर के युवराज पांडु से हगा लेकिन पांडु को मिले शार्प के कर्ण उसे संतान की प्राप्ति नहीं होगी | लेकिन उसे पहले कुंती ने मंत्र के प्रभाव को जाने के लिए उस मंत्र का उच्चारण किया और सूर्य देव से पुत्र प्राप्त किया | उस पुत्र का नाम कर्णथा और वो कवच और कुंडल के साथ जन्मा था | सूर्य पुत्र होने के कर्णउसमे सूर्य के भाटी तेजथा|

कुंती अविवाहित होने के करण उसने कर्णको गंगा नदी में एक टोकरी में रख कर बहा दिया था | थोड़ी दूर जाकर उस टोकरिको महाराज धृतराष्ट्र के सारथी अधीरथ और उनकी पत्नी राधा को मिली उन्होंने उस पुत्र को गॉड ले लिया और उसको सब राधेय के नाम सेबी बुलाते थे|  

कर्ण की शिक्षा

कर्ण बचपन से ही युद्ध कला में कुसल थे| कर्ण ने युद्ध कला सिख ने के लिए गुरु ड्रोन के पास गया लेकिन गुरु ड्रोन ने उसे सूत पुत्र कहकर उसे अपना शिष्य नहीं बनाया और उन्हों ने कहा “ में सिर्फ राजकुमार कोही शिक्षा देताहु किसी  सूत पुत्र को नहीं”|यह सुनकर कर्णवहासे चला जाता है और जाते जाते गुरु ड्रोन से केहेता हे की “आपने जिनसे विधियां प्राप्त की उन के पास से मे भी विधियां प्राप्त करूँगा में परसुराम से शिक्षा लेकर आउगा” यह कहकर वहासे चला जाता हे | 

लेकिन परसुराम केवल ब्राह्मण को ही शिक्षा देते थे|इस लिए कर्ण ने भी खुद को ब्राह्मण बताया|और युद्ध कला निपुण बने | कर्णविधियां जब संपूर्ण होने में कुछ दिन बाकिथे उस समय कर्ण ने देखा की उनके गुरु परसुराम को पत्थर पे आराम करते हुये देखा तब कर्ण ने उनका सर आपने गोद मे रख दिया उसी समय वह पे एक बिच्छू कर्ण के पैर को काट्टाहे और कर्णको पैर से बोहोत ज्यादा खून निकलने लगता हे उसे दर्द में पीड़ित देख कर परसुराम ने उसे पूछा की “तुम ब्राह्मण नहीं हो बताओ तुम कैन हो किया तुम क्षत्रिय हो” लेकिन कर्णको खुद के बारे में पता ही नहि था|कर्ण ने अपनी सचाई बताते हुवे कहा “मर एक सूत पुत्र हु” तहा सुनकर परसुराम क्रोधित होकर उसे श्राप देते हे की “जबी तुम हे अपनी विधियां की सबसे ज्यादा जरूरत होगी तब तुम अपनी सारी विधियां को भूल जाओगे | 

दान वीर कर्ण 

हम ने दान वीर कर्ण के बारे सुनहि हे | कर्णको दान वीर राजा भी कहा जाता हे| एक बार श्री कृष्णा और अर्जुन बात कर रहे थे| अर्जुन ने श्री कृष्णा को पूछा की आप क्यू कर्णको दान वीर कहते है और युधिष्ठिर को धर्म राज |श्री कृष्णा ने कहा की तुम इसके लिए मेरे साथ ब्राह्मण बनकर दोनों के पास आना होगा|और वो दोनों पहले युधिष्ठिर के पास जाते हे |तब बारिश हो रही थी| और जलाने के लिए सुखी चन्दन की लकड़ी मांगते है |वो आसपास धुनता हे |लेकिन बारिश होने के कारन युधिष्ठिर चन्दन की लकड़ी या  नहीं दे पाता और दोनों से शर्मा मांगता हे|उसके बाद दोनों वह से कर्ण के पास जाते हे और वाह भी  चन्दन की लकड़ी मांगते है | कर्ण भी आसपास धुनता हे | लेकिन उसे भी नहीं मील्टी हे |लेकिन कर्ण उन दोनों ब्राह्मण को खाली हाथ नहीं जाने देना चाहता था इस लिए उसने अपने घर के दरवाज़े जो की चन्दन से बने थे |उसे दे दिया | और इसी बात से साबित होता हे की कर्ण कितना बड़ा डानवीर था|  

इसके अलावाभि कर्ण ने काफी बड़े दान किये हे जैसेकि आपने कवच और कुंडल को देवराज इन्द्र को दे दिया था और कुंती माता को चार पंड़ावों को जीवित छोर ने का वचन दिया था|

दुर्योधन के साथ मित्रता 

कुरुपुत्र जब गुरु ड्रोन के पास से शिक्षा ले कर आये तब उनकी शिक्षा का पराक्रम दिखने के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया वह सबने अपनी युद्ध कला का प्रदर्शन किया और अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुरधर के रूप ने सम्मानित किया जारहा था |उस समय वह पे कर्ण आता है वो अर्जुन को युद्ध के लिए चुनौती देता हे|लेकिन उसे सूत पुत्र कह के वहासे जाने को कहते हे लेकिन वह पे दुर्योधन ने उसे सबके सामने अगदेश का राजा बना देता हे|और कर्ण को अपना प्रिय मित्र घोषित करता हे | उसके बाद उन दोनों की दोस्ती और भी ज्यादा गहरी होग यी | कर्ण दुर्योधन केली अपने प्राण भी देने के लिए तैयार था | 

कर्ण वध

महाभारत के युद्ध के दौरान  पन्द्रवे दिन कर्ण का वध हुवा था | उसका वध अर्जुन के हाथों हुव था | पांडव और कौरवों  के बीच में चल रहे माहाभर के युद्ध के दौरान कौरवों की ओर से युद्ध कर रहे सभी महारथी भीष्म पितामह , आचार्य द्रोण , कृपाचार्य वीर गति को प्राप्त हो चुके थे|उसके बाद कौरवों की सेना का सेनापति बनाया था|उसके बाद कर्ण और अर्जुन के बिच में धमसान युद्ध हुवा उस दौरान कर्ण के रथ का पहिया जमीन में फसजाता हे |उसे निकल ने के लिए जब कर्ण रथ से निचे उतर कर जब रथ का पहिया जमीन से निकल ने लगता हे तब श्री कृष्णा अर्जुन से कर्ण को मरने के लिए के हटा हे| लेकिन अर्जुन उसे मरने से मना करता हे | कियुकी वो बिना सस्त्रो के निहथा था | लेकिन श्री कृष्णा अर्जुन को कहता हे की उसने तुम्हारे पुत्र अभिमन्यु का वध किया जब वो निहथा था | इस बात को सुनकर अर्जुन क्रोधित हो कर कर्ण के ऊपर हमला करने के लिए तैयार होता हे |इसे देख कर कर्ण भी आपने अस्त्रो का आवाहन करता हे | लेकिन परसुराम के शॉप के कारन वो पानी विधिया को भूल ने लगता है | और अर्जुन कर्ण का वध कर देता हे| 

कर्ण की सचाई 

अर्जुन के घुवारा कर्ण का वध होने की बात पता चलते ही कुंती वह पोहोच जाती हे|और कर्ण को देखकर रोने लगती हे|उसे देखकर पाचो भाई कुंती माता से पूछने लगते हे|तब कुंती उनको बताते हुवे केहती है की कर्ण  तुम्हारा बड़ा भाई था| बाद युधिष्ठिर कर्ण के नाम का दान करने लगा था | और अर्जुन ने उसके पुत्र वृषकेतु को धनुर विधिया की शिक्षा दीथी |

आज भी महाभारत के योद्धा के नाम में कर्ण का नाम शामिल होता है|और उसके साथ साथ दानवीरो के नाम में कर्ण का नाम सबसे पहले लिया जाता है|     

निष्कर्ष
दोस्तों कमेंट के माध्यम से यह बताएं कि “सूर्यपुत्र कर्ण” का यह आर्टिकल आपको कैसा लगा | आप सभी से निवेदन हे की अगर आपको हमारी पोस्ट के माध्यम से सही जानकारी मिले तो अपने जीवन में आवशयक बदलाव जरूर करे फिर भी अगर कुछ क्षति दिखे तो हमारे लिए छोड़ दे और हमे कमेंट करके जरूर बताइए ताकि हम आवश्यक बदलाव कर सके | आपका एक शेयर हमें आपके लिए नए आर्टिकल लाने के लिए प्रेरित करता है |

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version