Adi Shankaracharya Biography in Hindi : आदि शंकराचार्य जी एक ऐसे व्यक्तित्व वाले महापुरुष थे, जिन्होंने मानव जाति को ईश्वर की वास्तविकता का अनुभव कराया। आदि शंकराचार्य, जिन्हें शंकर या शंकराचार्य के नाम से भी जाना जाता है ।
“आत्मा और परमात्मा एक है” इस आधार पर उन्होंने अद्वैतवाद के सिद्धान्त का प्रसार किया । श्री शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) एक महान् आचार्य, धर्मगुरु, तात्त्विक और वेदान्ती थे। उन्हें हिंदू धर्म के सम्पूर्ण इतिहास में महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली आचार्य माना जाता है। शंकराचार्य के जीवन का अध्ययन करने से हमें उनके वेदान्त दर्शन, संस्कृति और साहित्य में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका का पता चलता है।
शंकराचार्य का जन्म आठवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में मध्य केरल के कालड़ी नामक ग्राम में हुआ। शंकराचार्य भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे।
जन्म: | 788 ई. |
मृत्यु: | 820 ई. |
जन्मस्थान: | केरल के कलादी ग्राम मे |
पिता: | श्री शिवागुरू |
माता: | श्रीमति अर्याम्बा |
जाति: | नाबूदरी ब्राह्मण |
धर्म: | हिन्दू |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
भाषा: | संस्कृत,हिन्दी |
गुरु: | आचार्य गोविन्द भगवत्पाद |
प्रमुख उपन्यास: | अद्वैत वेदांत |
आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय | Adi Shankaracharya Biography in Hindi
शंकराचार्य का जन्म केरल राज्य के कलादी गांव में हुआ था, जो अब केरल के एक भाग के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म सन् 788 ईसा पूर्व हुआ था। उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनके माता-पिता शिवगुरु और आर्यम्बा थे। किंवदंतियों के अनुसार, शंकर ने छोटी उम्र से ही असाधारण बुद्धि और आध्यात्मिक झुकाव दिखाया था।
आठ साल की उम्र में, शंकर एक प्रसिद्ध शिक्षक और अद्वैत वेदांत के प्रतिपादक गोविंदा भगवत्पाद के शिष्य बन गए। अपने गुरु के मार्गदर्शन में, शंकर ने वेदान्तिक ग्रंथों और उपनिषदों का गहराई से अध्ययन किया। उन्होंने अद्वैत वेदांत की दार्शनिक अवधारणाओं और ध्यान प्रथाओं में व्यापक प्रशिक्षण प्राप्त किया।
आदि गुरु शंकराचार्य के कार्य अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को बढ़ावा देने और समझाने में सहायक थे। उन्होंने ब्रह्म सूत्र, उपनिषद और भगवद गीता सहित प्रमुख हिंदू धर्मग्रंथों पर टिप्पणियाँ लिखीं। उनकी टिप्पणियाँ, जिन्हें “भाष्य” के नाम से जाना जाता है, इन ग्रंथों के दार्शनिक और आध्यात्मिक पहलुओं पर गहन व्याख्या मानी जाती हैं।
अपने पूरे जीवन में, आदि गुरु शंकराचार्य ने विभिन्न दार्शनिक पृष्ठभूमि के विद्वानों के साथ बहस और चर्चा में शामिल होने के लिए भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक यात्राएँ कीं। उनका उद्देश्य वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित करना, हिंदू प्रथाओं की शुद्धता को बहाल करना और अद्वैत वेदांत की सर्वोच्चता स्थापित करना था। शंकर ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में “मठ” नामक चार मठ केंद्र भी स्थापित किए, जो उनकी आध्यात्मिक और दार्शनिक शिक्षाओं का केंद्र बन गए।
आदि गुरु शंकराचार्य की शिक्षाओं ने वास्तविकता की अभेद्य प्रकृति पर जोर दिया, यह दावा करते हुए कि व्यक्तिगत स्व (आत्मन) और सार्वभौमिक चेतना (ब्राह्मण) अंततः एक हैं। उन्होंने अपने वास्तविक स्वरूप के ज्ञान और सांसारिक मोह-माया के त्याग के माध्यम से आत्म-प्राप्ति के मार्ग के बारेमे बताया । उनके दर्शन ने अस्तित्व, मुक्ति और मानव जीवन के अंतिम लक्ष्य की गहन समझ प्रदान की।
हिंदू दर्शन, आध्यात्मिक विचार और वैदिक परंपराओं के पुनरुद्धार में आदि शंकराचार्य का योगदान महत्वपूर्ण था। उनकी शिक्षाएँ सत्य के चाहने वालों को प्रेरित करती रहती हैं और उन्होंने भारत के आध्यात्मिक और बौद्धिक परिदृश्य पर एक गहरी छाप छोड़ी है। वास्तविकता की प्रकृति में शंकर की गहन अंतर्दृष्टि और आत्म-प्राप्ति की खोज उन्हें हिंदू धर्म के इतिहास में सबसे सम्मानित व्यक्तियों में से एक बनाती है।
शंकराचार्य चार मठो के नाम (Adi Shankaracharya Math Name)
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मुख्य शंकराचार्य मठ (मठ संस्थान) हैं
- वेदान्त मठ : जिसे वेदान्त ज्ञानमठ भी कहा जाता है जोकि, सबसे पहला मठ था और इसे श्रंगेरी रामेश्वर अर्थात् दक्षिण भारत मे, स्थापित किया गया। इस मठ की स्थापना यजुर्वेद के आधार पर की गई है।
- गोवर्धन मठ : गोवर्धन मठ जोकि, दूसरा मठ था जिसे जगन्नाथपुरी अर्थात् पूर्वी भारत मे, स्थापित किया गया। इस पीठ की स्थापना आदि शंकराचार्य ने सामवेद के आधार पर की हुई है।
- शारदा मठ : जिसे शारदा या कलिका मठ भी कहा जाता है जोकि, तीसरा मठ था जिसे, द्वारकाधीश अर्थात् पश्चिम भारत मे, स्थापित किया गया। इस मठ का निर्माण आदि शंकराचार्य जी ने ऋगवेद आधार पर किया हुआ है।
- ज्योतिपीठ मठ : ज्योतिपीठ मठ जिसे बदरिकाश्रम भी कहा जाता है जोकि, चौथा और अंतिम मठ था जिसे, बद्रीनाथ अर्थात् उत्तर भारत मे, स्थापित किया गया। इस मठ का निर्माण आदि शंकराचार्य ने अर्थ वेद के आधार पर किया है।
ये चार मठ अद्वैत वेदांत परंपरा के भीतर सीखने और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के महत्वपूर्ण केंद्रों के रूप में काम करते हैं