दोस्तों क्या आप “महादेव का आठवा अवतार दुर्वासा” Lord Shiva Durvasa Aavtar अवतार के बारेमे जानना चाहते हे ? क्या आप भगवन शिव के अवतार के बारेमे जानना चाहते हे? तो आप सही आर्टिकल पढ़ रहे हो । आपसे अनुरोध है की कुछ समय दे कर पुरे लेख को अच्छी तरह से पढ़े ताकि आपको पूरी जानकारी मिल सके।
1 | Veerabhadra Avatar of Lord Shiva | महादेव का प्रथम वीरभद्र अवतार |
2 | Piplaad Avatar of Lord Shiva | महादेव का द्वितीय पिप्पलाद अवतार |
3 | Nandi Avatar of Lord Shiva | महादेव का तृतीय नंदी अवतार |
4 | Bhairava Avatar of Lord Shiva | महादेव का चौथा भैरव अवतार |
5 | Ashwatthama Avatar of Lord Shiva | महादेव का पाँचवाँ अश्वत्थामा अवतार |
6 | Sharabha Avatar of Lord Shiva | महादेव का छठा शरभावतार |
7 | Grihapati avatar of Lord Shiva | महादेव का सातवाँ गृहपति अवतार |
8 | Durvasa avatar of Lord Shiva | महादेव का आठवाँ ऋषि दुर्वासा |
9 | Hanuman Avatar of Lord Shiva | महादेव का नोवाँ हनुमान अवतार |
10 | Rishabha Avatar of Lord Shiva | महादेव का दसवाँ हनुमान अवतार |
11 | Yatinath Avatar of Lord Shiva | महादेव का ग्यारहवाँ यतिनाथ अवतार |
12 | Krishna Darshan Avatar of Lord Shiva | महादेव का बारहवाँ कृष्णदर्शन अवतार |
13 | Avadhut Avatar of Lord Shiva | महादेव का तेरहवाँ अवधूत अवतार |
14 | Bhikshuvarya Avatar of Lord Shiva | महादेव का चौदहवाँ भिक्षुवर्य अवतार |
15 | Sureshwar Avatar of Lord Shiva | महादेव का पंद्रहवाँ सुरेश्वर अवतार |
16 | Keerat Avatar of Lord Shiva | महादेव का सोलहवाँ किरात अवतार |
17 | Brahmachari avatar of Lord Shiva | महादेव का सत्रहवाँ ब्रह्मचारी अवतार |
18 | Sunatnartak avatar of Lord Shiva | महादेव का अठारहवाँ सुनटनर्तक अवतार |
19 | Yaksheshwar Avatar of Lord Shiva | महादेव का उन्नीसवाँ यक्ष अवतार |
महादेव का आठवा अवतार: दुर्वासा (Durvasa)
भगवान् शिवजी के प्रमुख आँवतारो में से एक अवतार महर्षि दुर्वासा का था | भगवान् शिवजी ने महर्षि दुर्वासा के रूप में अपना आठवा अवतार इस पृथ्वी पर लिया था | महर्षि दुर्वासा अपने क्रोध के लिए जाने जाते हैं। पुराणों में ऋषि दुर्वासा का नाम मुख्य ऋषि मुनियों के साथ लिया जाता है|कभी-कभी वे अकारण ही भयंकर क्रोधित हो जाते हे। वे सब प्रकार के लौकिक वरदान और श्राप देने में समर्थ हैं।
भगवान शिव का गृहपति अवतार – Lord Shiva Grihapati Avatar
दुर्वासा अवतार कथा : Lord Shiva Durvasa Aavtar
महर्षि अत्री और अनसुइया की कोई संतान नहीं थी | तब ब्रह्माजी से परामर्श माँग ने पर उन्होंने त्रिदेव की तपस्या का शुजाव दिया |ब्रह्माजी के कथन अनुशार महर्षि अत्री और अनसुइया दोनों ऋक्षकुल पर्वत पर त्रिदेव की कड़ी तपस्या करते चले गए | कई सालो की कड़ी तपश्या के बाद तीनो देव इनकी तपस्या से खुश हुए और उन्हें दर्शन दिए | महर्षि अत्री और अनसुइया ने पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगने पर त्रिदेव ने सवयं उनके पुत्र के रूप में अवतरित होने का वरदान दिया |
कुछ समय पश्च्यात चित्रकूट स्थित आश्रम में देवी अनसुइया के पास ब्रह्माजी के अंश से सोम, विष्णुजी के अंश से दत्तात्रेय और शिवजी के अंश से मुनि दुर्वासा शिशु रूप में आश्रम में उपस्थित हुए | अनसूयाजी ने कहा कि “इस वर्तमान स्वरूप में वे पुत्रों के रूप में मेरे पास ही रहेंगे।”इस तरह महर्षि अत्री और अनसुइया को तीन पुत्र के रूप में त्रिदेव प्राप्त हुए |
ऋषि दुर्वासा का स्वभाव
भगवान् शिव के रूप में उपस्थित होने वाले दुर्वासा अत्याधिक गुस्से वाले प्रतीत हुए | जिस तरह शिव जी का गुस्सा जल्दी शांत नहीं होता था| उसी तरह इनका भी गुस्सा जल्दी शांत नहीं होता था| ऋषि दुर्वासा ने सतयुग, द्वापर और त्रेता युग में भी मानव जाति को ज्ञान की शिक्षा दी है| उसी कारण उन्हें देवी देवता एवम समस्त मानव जाति द्वारा बहुत सम्मान प्राप्त था| परन्तु महर्षि दुर्वासा के क्रोधित स्वभाव के कारण वे कई लोगो को श्रापित कर देते थे | एवम इन्द्र देव ,लक्ष्मणजी को भी महर्षि दुर्वासा ने श्राप दिया था |
महर्षि दुर्वासा और इंद्र देव – Lord Shiva Durvasa Aavtar
पुराणों की कथा आनुषर माना जाता हे की एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवराज इंद्र को पारिजात फूलों की माला भेंट की| परन्तु इंद्र ने उस माला को अपने हाथी ऐरावत को पहना दिया और ऐरावत ने उस माला को अपनी सूंड में लपेटकर फेंक दिया। अपने भेंट की ये दुर्दशा देखकर ऋषि दुर्वासा बहुत क्रोधित हुए और इंद्र सहित पूरे स्वर्ग को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया।इस घटना के बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने देवताओं से समृद्ध मंथन करने का सुझाव दिया | भगवान विष्णु ने कहा ” तुम सभी दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करो। समृद्ध मंथन से स्वर्ग फिर से धन-संपत्ति से पूर्ण हो जाएगा”।माना जाता हे की समृद्ध मंथन होने का मुख्य कारण महर्षि दुर्वासा का दिया हुआ श्राप था|
महर्षि दुर्वासा और लक्षमण
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार ऋषि दुर्वासा राम से मिलने की इच्छा से राम के पास जाते है| वहां लक्षमण राम जी के दरबारी बन कर खड़े रहते है,उस समय राम मृत्यु के देवता यम के साथ किसी विषय में गहन बात कर रहे होते है| बात शुरू होने से पहले यम, राम को कहते है कि उनके बीच में जो भी बातचीत होगी वो किसी को नहीं पता चलनी चाहए और यदि कोई व्यक्ति यह बातचीत सुनता हे तो उसे मृत्यु दंड दे | तो राम ने लक्षमण को दरवाजे के बाहर खड़ा कर देते है| उसी समय ऋषि दुर्वासा वहाँ आ पूछते हे | लक्षमण ने उन्हें इंतजार करने को कहां | यह सुन ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो जाते है और लक्षमण को कहते हे की अगर राम को हमारे आगमन का समाचार नहीं दिया तो वे पूरी अयोध्या को श्राप दे देंगें| यह सुन लक्ष्मण राम के पास चले जाते हे |
लक्ष्मण को क्यों मिला मृत्यु दंड
यमराज को दिए वचन अनुशार अब लक्ष्मण को मृत्यु दंड देने का समय था तब राम इस दुविधा के हल के लिए गुरु वशिष्ठ के पास जाते हे | गुरु वशिष्ठ, लक्ष्मण को आदेश देते है कि वे राम को छोड़ चले जाएँ,राम से इस तरह का बिछड़ना मृत्यु के समान होगा | इस तरह पूरी अयोध्या को ऋषि दुर्वासा के श्राप से बचाने के लिए लक्षमण राम को छोड़, सरयु नदी में चले जाते है |
महादेव का नौवा अवतार : हनुमान | Lord shiva rudra avatar hanuman
महादेव का दशवा अवतार वृषभ | Lord Shiva Vrishabha avatar
निष्कर्ष
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