Home Stotram शिव महिम्न स्तोत्र अर्थ सहित । Shiv Mahimna Stotram Lyrics in Hindi

शिव महिम्न स्तोत्र अर्थ सहित । Shiv Mahimna Stotram Lyrics in Hindi

Shiv Mahimna Stotram : “शिव महिम्न स्तोत्र” की रचना गंधर्व पुष्पदन्त ने की थी । यह महिम्न स्तोत्र भगवान शिव की महानता का वर्णन करने वाला एक शक्तिशाली स्तोत्र है। जब पुष्पदंत अनजाने में राजा चित्ररथ के बगीचे में बिल्व के पत्तों पर कदम रखता है, तो क्रोधित भगवान शिव पुष्पदंत को उसकी दिव्य शक्तियों को हटाकर दंडित करते हैं।

क्षमा मांगते हुए, पुष्पदंत ने शिव महिम्न स्तोत्र की रचना की जिसमें उन्होंने भगवान शिव की महानता के बारे में विस्तार से बताया। प्रसन्न होकर भगवान शिव अपनी दिव्य शक्तियों को लौटा देते हैं।

दोस्तों इस पोस्ट में हम ये जानेंगे की Shiv Mahimna Stotram की रचना किसने की हे ? महिम्न स्तोत्रम् का हिंदी में अर्थ और इस स्त्रोत के महत्व के बारेमे जानना चाहते हे तो हमारे साथ बने रहिये ।

Shiv Mahimna Stotram Song Detail:

Album :शिव माला खंड 1
Artist :पूज्य श्री रमेशभाई ओझा
Lyricist :गंधर्वराज पुष्पदंत
Genre :स्तोत्रम् (Shiv Mahimna Stotram)
Music Director :पूज्य श्री रमेशभाई ओझा

शिव महिम्न स्तोत्र अर्थ सहित – Shiv Mahimna Stotram Lyrics in Hindi

पुष्पदन्त उवाच

महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी
स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः ।
अथाऽवाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन्
ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः ॥ १ ॥

हिंदी अर्थ : हे प्रभु ! आप प्राणी मात्र के कष्टों को हराने वाले हैं। मैं इस स्तोत्र द्वारा आपकी वंदना कर रहा हूं जो कदाचित आपके वंदना के योग्य न भी हो पर हे महादेव स्वयं ब्रह्मा और अन्य देवगण भी आपके चरित्र की पूर्ण गुणगान करने में सक्षम नहीं हैं। जिस प्रकार एक पक्षी अपनी क्षमता के अनुसार ही आसमान में उड़ान भर सकता है उसी प्रकार मैं भी अपनी यथाशक्ति आपकी आराधना करता हूं।

अतीतः पन्थानं तव च महिमा वाङ्मनसयोः
अतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि ।
स कस्य स्तोतव्यः कतिविधगुणः कस्य विषयः
पदे त्वर्वाचीने पतति न मनः कस्य न वचः ॥ २ ॥

हिंदी अर्थ : हे प्रभु ! आपकी व्याख्या न तो मन, ना ही वचन द्वारा ही संभव है। आपके सन्दर्भ में वेद भी अचंभित हैं तथा नेति नेति का प्रयोग करते हैं अर्थात यह भी नहीं और वो भी नहीं… आपका संपूर्ण गुणगान भला कौन कर सकता है? यह जानते हुए भी कि आप आदि व अंत रहित हैं परमात्मा का गुणगान कठिन है मैं आपकी वंदना करता हूं।

मधुस्फीता वाचः परमममृतं निर्मितवतः
तव ब्रह्मन् किं वागपि सुरगुरोर्विस्मयपदम् ।
मम त्वेतां वाणीं गुणकथनपुण्येन भवतः
पुनामीत्यर्थेऽस्मिन् पुरमथन बुद्धिर्व्यवसिता ॥ ३ ॥

हिंदी अर्थ : हे वेद और भाषा के सृजक जब स्वयं देवगुरु बृहस्पति भी आपके स्वरूप की व्याख्या करने में असमर्थ हैं तो फिर मेरा कहना ही क्या? हे त्रिपुरारी, अपनी सीमित क्षमता का बोध होते हुए भी मैं इस विश्वास से इस स्तोत्र की रचना कर रहा हूं कि इससे मेरी वाणी शुद्ध होगी तथा मेरी बुद्धि का विकास होगा।

शिव स्तोत्र की सारी लिरिक्स अर्थ सहित आपको यहाँ मिलेगी 

तवैश्वर्यं यत्तज्जगदुदयरक्षाप्रलयकृत्
त्रयीवस्तु व्यस्तं तिस्रुषु गुणभिन्नासु तनुषु ।
अभव्यानामस्मिन् वरद रमणीयामरमणीं
विहन्तुं व्याक्रोशीं विदधत इहैके जडधियः ॥ ४ ॥

हिंदी अर्थ : हे प्रभु ! आप ही इस संसार के सृजक, पालनकर्ता एवं विलयकर्ता हैं। तीनों वेद आपकी ही संहिता गाते हैं, तीनों गुण (सतो-रजो-तमो) आपसे ही प्रकाशित हैं। आपकी ही शक्ति त्रिदेवों में निहित है। इसके बाद भी कुछ मूढ़ प्राणी आपका उपहास करते हैं तथा आपके बारे भ्रम फैलाने का प्रयास करते हैं जो की सर्वथा अनुचित है।

किमीहः किङ्कायः स खलु किमुपायस्त्रिभुवनं
किमाधारो धाता सृजति किमुपादान इति च ।
अतर्क्यैश्वर्ये त्वय्यनवसर दुःस्थो हतधियः
कुतर्कोऽयं कांश्चित् मुखरयति मोहाय जगतः ॥ ५ ॥

हिंदी अर्थ : हे महादेव !!! वो मूढ़ प्राणी जो स्वयं ही भ्रमित हैं इस प्रकार से तर्क-वितर्क द्वारा आपके अस्तित्व को चुनौती देने की कोशिश करते हैं। वह कहते हैं कि अगर कोई परम पुरुष है तो उसके क्या गुण हैं? वह कैसा दिखता है? उसके क्या साधन हैं? वह इस सृष्टि को किस प्रकार धारण करता है? ये प्रश्न वास्तव में भ्रामक मात्र हैं। वेद ने भी स्पष्ट किया है कि तर्क द्वारा आपको नहीं जाना जा सकता।

अजन्मानो लोकाः किमवयववन्तोऽपि जगतां
अधिष्ठातारं किं भवविधिरनादृत्य भवति ।
अनीशो वा कुर्याद् भुवनजनने कः परिकरो
यतो मन्दास्त्वां प्रत्यमरवर संशेरत इमे ॥ ६ ॥

हिंदी अर्थ : हे परमपिता !!! इस सृष्टि में सात लोक हैं (भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्गलोक, सत्यलोक,महर्लोक, जनलोक, एवं तपलोक)। इनका सृजन भला सृजक (आपके) के बिना कैसे संभव हो सका? यह किस प्रकार से और किस साधन से निर्मित हुए? तात्पर्य यह है कि आप पर किसी प्रकार का संशय नहीं किया जा सकता।

त्रयी साङ्ख्यं योगः पशुपतिमतं वैष्णवमिति
प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमदः पथ्यमिति च ।
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ॥ ७ ॥

हिंदी अर्थ : वि‍विध प्राणी सत्य तक पहुंचने के लिए विभिन्न वेद पद्धतियों का अनुसरण करते हैं। पर जिस प्रकार सभी नदी अंतत: सागर में समाहित हो जाती है ठीक उसी प्रकार हर मार्ग आप तक ही पहुंचता है।

महोक्षः खट्वाङ्गं परशुरजिनं भस्म फणिनः
कपालं चेतीयत्तव वरद तन्त्रोपकरणम् ।
सुरास्तां तामृद्धिं दधति तु भवद्भूप्रणिहितां
न हि स्वात्मारामं विषयमृगतृष्णा भ्रमयति ॥ ८ ॥

हिंदी अर्थ : हे प्रभु ! आपके भृकुटी के इशारे मात्र से सभी देवगण ऐश्वर्य एवं संपदाओं का भोग करते हैं। पर आपके स्वयं के लिए सिर्फ बैल (नंदी), कपाल, बाघम्बर, त्रिशुल, कपाल एवं नाग्माला एवं भस्म मात्र है। अगर कोई संशय करें कि आप देवों के असीम ऐश्वर्य के स्त्रोत हैं तो आप स्वयं उन ऐश्वर्यों का भोग क्यों नहीं करते तो इस प्रश्न का उत्तर सहज ही है आप इच्छा रहित हैं तथा स्वयं में ही स्थितप्रज्ञ रहते हैं।

ध्रुवं कश्चित् सर्वं सकलमपरस्त्वध्रुवमिदं
परो ध्रौव्याऽध्रौव्ये जगति गदति व्यस्तविषये ।
समस्तेऽप्येतस्मिन् पुरमथन तैर्विस्मित इव
स्तुवन् जिह्रेमि त्वां न खलु ननु धृष्टा मुखरता ॥ ९ ॥

हिंदी अर्थ : हे त्रिपुरहंता !!! इस संसार के बारे में विभिन्न विचारकों के भिन्न-भिन्न मत हैं। कोई इसे नित्य जानता है तो कोई इसे अनित्य समझता है। अन्य इसे नित्यानित्य बताते हैं। इन विभिन्न मतों के कारण मेरी बुद्धि भ्रमित होती है पर मेरी भक्ति आप में और दृढ़ होती जा रही है।

तवैश्वर्यं यत्नाद् यदुपरि विरिञ्चिर्हरिरधः
परिच्छेतुं यातावनिलमनलस्कन्धवपुषः ।
ततो भक्तिश्रद्धा-भरगुरु-गृणद्भ्यां गिरिश यत्
स्वयं तस्थे ताभ्यां तव किमनुवृत्तिर्न फलति ॥ १० ॥

हिंदी अर्थ : एक समय आपके पूर्ण स्वरूप का भेद जानने हेतु ब्रह्मा एवं विष्णु क्रमश:प्रत्येक दिशा में गए। पर उनके सारे प्रयास विफल हुए। जब उन्होंने भक्ति मार्ग अपनाया तभी आपको जान पाए। क्या आपकी भक्ति कभी विफल हो सकती है?

अयत्नादासाद्य त्रिभुवनमवैरव्यतिकरं
दशास्यो यद्बाहूनभृत-रणकण्डू-परवशान् ।
शिरःपद्मश्रेणी-रचितचरणाम्भोरुह-बलेः
स्थिरायास्त्वद्भक्तेस्त्रिपुरहर विस्फूर्जितमिदम् ॥ ११ ॥

हिंदी अर्थ : हे त्रिपुरान्तक !!! दशानन रावण किस प्रकार विश्व को शत्रु विहीन कर सका? उसके महाबाहू हर पल युद्ध के लिए व्यग्र रहे। हे प्रभु! रावण ने भक्तिवश अपने ही शीश को काट-काट कर आपके चरण कमलों में अर्पित कर दिया, यह उसी भक्ति का प्रभाव था।

अमुष्य त्वत्सेवा-समधिगतसारं भुजवनं
बलात् कैलासेऽपि त्वदधिवसतौ विक्रमयतः ।
अलभ्यापातालेऽप्यलसचलिताङ्गुष्ठशिरसि
प्रतिष्ठा त्वय्यासीद् ध्रुवमुपचितो मुह्यति खलः ॥ १२ ॥

हिंदी अर्थ : हे प्रभु ! एक समय उसी रावण ने मद् में चूर आपके कैलाश को उठाने की धृष्टता करने की भूल की। हे महादेव आपने अपने सहज पांव के अंगूठे मात्र से उसे दबा दिया। फिर क्या था रावण कष्ट में रूदन करा उठा। वेदना ने पटल लोक में भी उसका पीछा नहीं छोड़ा। अंततः आपकी शरणागति के बाद ही वह मुक्त हो सका।

यदृद्धिं सुत्राम्णो वरद परमोच्चैरपि सतीं
अधश्चक्रे बाणः परिजनविधेयत्रिभुवनः ।
न तच्चित्रं तस्मिन् वरिवसितरि त्वच्चरणयोः
न कस्याप्युन्नत्यै भवति शिरसस्त्वय्यवनतिः ॥ १३ ॥

हिंदी अर्थ : हे शम्भो ! आपकी कृपा मात्र से ही बाणासुर दानव इन्द्रादि देवों से भी अधिक ऐश्वर्यशाली बन सका तथा तीनों लोकों पर राज्य किया। हे ईश्वर, आपकी भक्ति से क्या कुछ संभव नहीं है?

अकाण्ड-ब्रह्माण्ड-क्षयचकित-देवासुरकृपा
विधेयस्याऽऽसीद् यस्त्रिनयन विषं संहृतवतः ।
स कल्माषः कण्ठे तव न कुरुते न श्रियमहो
विकारोऽपि श्लाघ्यो भुवन-भय- भङ्ग- व्यसनिनः ॥ १४ ॥

हिंदी अर्थ : देवताओं एव असुरों ने अमृत प्राप्ति हेतु समुन्द्र मंथन किया। समुद्र से मूल्यवान वस्तुएं प्रकट हुईं जो देव तथा दानवों ने आपस में बांट ली। पर जब समुद्र से अत्यधिक भयावह कालकूट विष प्रकट हुआ तो असमय ही सृष्टि समाप्त होने का भय उत्पन्न हो गया और सभी भयभीत हो गए। हे हर, तब आपने संसार रक्षार्थ विषपान कर लिया। वह विष आपके कंठ में निष्क्रिय हो कर पड़ा है। विष के प्रभाव से आपका कंठ नीला पड़ गया। हे नीलकंठ, आश्चर्य है की यह स्थिति भी आपकी शोभा ही बढ़ाती है। कल्याण कार्य सुन्दर ही होता है।

असिद्धार्था नैव क्वचिदपि सदेवासुरनरे
निवर्तन्ते नित्यं जगति जयिनो यस्य विशिखाः ।
स पश्यन्नीश त्वामितरसुरसाधारणमभूत्
स्मरः स्मर्तव्यात्मा न हि वशिषु पथ्यः परिभवः ॥ १५ ॥

हिंदी अर्थ : हे प्रभु ! कामदेव के वार से कभी कोई भी नहीं बच सका चाहे वो मनुष्य हों, देव या दानव ही पर जब कामदेव ने आपकी शक्ति समझे बिना आप की ओर अपने पुष्प बाण को साधा तो आपने उसे तत्क्षण ही भस्म कर दिया। श्रेष्ठ जनों के अपमान का परिणाम हितकर नहीं होता।

मही पादाघाताद् व्रजति सहसा संशयपदं
पदं विष्णोर्भ्राम्यद् भुज-परिघ-रुग्ण-ग्रह- गणम् ।
मुहुर्द्यौर्दौस्थ्यं यात्यनिभृत-जटा-ताडित-तटा
जगद्रक्षायै त्वं नटसि ननु वामैव विभुता ॥ १६ ॥

हिंदी अर्थ : हे नटराज !!! जब संसार कल्याण के हेतु आप तांडव करने लगते हैं तो आपके पांव के नीचे धरा कांप उठती है, आपके हाथों की परिधि से टकरा कर ग्रह-नक्षत्र भयभीत हो उठते हैं। विष्णु लोक भी हिल जाता है। आपकी जटा के स्पर्श मात्र से स्वर्गलोग व्याकुल हो उठता है। आश्चर्य ही है हे महादेव कि अनेक बार कल्याणकारी कार्य भी भय उत्पन्न करते हैं।

वियद्व्यापी तारा-गण-गुणित-फेनोद्गम-रुचिः
प्रवाहो वारां यः पृषतलघुदृष्टः शिरसि ते ।
जगद्द्वीपाकारं जलधिवलयं तेन कृतमिति
अनेनैवोन्नेयं धृतमहिम दिव्यं तव वपुः ॥ १७ ॥

हिंदी अर्थ : आकाश गंगा से निकलती तारागणों के बीच से गुजरती गंगा जल अपनी धारा से धरती पर टापू तथा अपने वेग से चक्रवात उत्पन्न करती हैं। पर य उफान से परिपूर्ण गंगा आपके मस्तक पर एक बूंद के सामन ही दृष्टिगोचर होती है। यह आपके दिव्य स्वरूप का ही परिचायक है।

रथः क्षोणी यन्ता शतधृतिरगेन्द्रो धनुरथो
रथाङ्गे चन्द्रार्कौ रथ-चरण-पाणिः शर इति ।
दिधक्षोस्ते कोऽयं त्रिपुरतृणमाडम्बर विधिः
विधेयैः क्रीडन्त्यो न खलु परतन्त्राः प्रभुधियः ॥ १८ ॥

हिंदी अर्थ : हे प्रभु ! आपने त्रिपुरासुर का वध करने हेतु पृथ्वी को रथ, ब्रह्मा को सारथी, सूर्य-चन्द्र को पहिया एवं स्वयं इन्द्र को बाण बनाया। हे शम्भु, इस वृहत प्रयोजन की क्या आवश्यकता थी? आपके लिए तो संसार मात्र का विलय करना अत्यंत ही छोटी बात है। आपको किसी सहायता की क्या आवश्यकता?

हरिस्ते साहस्रं कमल बलिमाधाय पदयोः
यदेकोने तस्मिन् निजमुदहरन्नेत्रकमलम् ।
गतो भक्त्युद्रेकः परिणतिमसौ चक्रवपुषः
त्रयाणां रक्षायै त्रिपुरहर जागर्ति जगताम् ॥ १९ ॥

हिंदी अर्थ : जब भगवान विष्णु ने आपकी सहस्र कमलों एवं सहस्र नामों द्वारा पूजा प्रारम्भ की तो उन्होंने एक कमल कम पाया। तब भक्ति भाव से हरी ने अपनी एक आंख को कमल के स्थान पर अर्पित कर दिया। उनकी यही अदम्य भक्ति ने सुदर्शन चक्र का स्वरूप धारण कर लिया जिसे भगवान विष्णु संसार रक्षार्थ उपयोग करते हैं।

क्रतौ सुप्ते जाग्रत् त्वमसि फलयोगे क्रतुमतां
क्व कर्म प्रध्वस्तं फलति पुरुषाराधनमृते ।
अतस्त्वां सम्प्रेक्ष्य क्रतुषु फलदान-प्रतिभुवं
श्रुतौ श्रद्धां बध्वा दृढपरिकरः कर्मसु जनः ॥ २० ॥

हिंदी अर्थ : हे देवाधिदेव !!! आपने ही कर्म-फल का विधान बनाया। आपके ही विधान से अच्छे कर्मो तथा यज्ञ कर्म का फल प्राप्त होता है। आपके वचनों में श्रद्धा रख कर सभी वेद कर्मो में आस्था बनाए रखते हैं तथा यज्ञ कर्म में संलग्न रहते हैं।

क्रियादक्षो दक्षः क्रतुपतिरधीशस्तनुभृतां
ऋषीणामार्त्विज्यं शरणद सदस्याः सुर-गणाः ।
क्रतुभ्रंशस्त्वत्तः क्रतुफल-विधान-व्यसनिनः
ध्रुवं कर्तुं श्रद्धा विधुरमभिचाराय हि मखाः ॥ २१ ॥

हिंदी अर्थ : हे प्रभु ! यद्यपि आपने यज्ञ कर्म और फल का विधान बनाया है तदपि जो यज्ञ शुद्ध विचारों और कर्मो से प्रेरित न हो और आपकी अवहेलना करने वाला हो उसका परिणाम कदाचित विपरीत और अहितकर ही होता है। दक्षप्रजापति के महायज्ञ से उपयुक्त उदाहरण भला और क्या हो सकता है? दक्षप्रजापति के यज्ञ में स्वयं ब्रह्मा पुरोहित तथा अनेकानेक देवगण तथा ऋषि-मुनि सम्मिलित हुए। फिर भी शिव की अवहेलना के कारण यज्ञ का नाश हुआ। आप अनीति को सहन नहीं करते भले ही शुभकर्म के संदर्भ में क्यों न हो।

प्रजानाथं नाथ प्रसभमभिकं स्वां दुहितरं
गतं रोहिद् भूतां रिरमयिषुमृष्यस्य वपुषा ।
धनुष्पाणेर्यातं दिवमपि सपत्राकृतममुं
त्रसन्तं तेऽद्यापि त्यजति न मृगव्याधरभसः ॥ २२ ॥

हिंदी अर्थ : एक समय में ब्रह्मा अपनी पुत्री पर ही मोहित हो गए जब उनकी पुत्री ने हिरनी का स्वरूप धारण कर भागने की कोशिश की तो कामातुर ब्रह्मा भी हिरन भेष में उसका पीछा करने लगे। हे शंकर तब आपने व्याघ्र स्वरूप में धनुष-बाण लेकर ब्रह्मा की और कूच किया। आपके रौद्र रूप से भयभीत ब्रह्मा आकाश दिशा की ओर भाग निकले तथा आजे भी आपसे भयभीत हैं।

स्वलावण्याशंसा धृतधनुषमह्नाय तृणवत्
पुरः प्लुष्टं दृष्ट्वा पुरमथन पुष्पायुधमपि ।
यदि स्त्रैणं देवी यमनिरत-देहार्ध-घटनात्
अवैति त्वामद्धा बत वरद मुग्धा युवतयः ॥ २३ ॥

हिंदी अर्थ : हे योगेश्वर! जब आपने माता पार्वती को अपनी सहधर्मिणी बनाया तो उन्हें आपके योगी होने पर शंका उत्पन्न हुई। यह शंका निर्मूल ही थी क्योंकि जब स्वयं कामदेव ने आप पर अपना प्रभाव दिखलाने की कोशिश की तो आपने काम को जला करा नष्ट करा दिया।

श्मशानेष्वाक्रीडा स्मरहर पिशाचाः सहचराः
चिता-भस्मालेपः स्रगपि नृकरोटी-परिकरः ।
अमङ्गल्यं शीलं तव भवतु नामैवमखिलं
तथापि स्मर्त्‍ईणां वरद परमं मङ्गलमसि ॥ २४ ॥

हिंदी अर्थ : हे भोलेनाथ!!! आप श्मशान में रमण करते हैं, भुत-प्रेत आपके संगी होते हैं, आप चिता भस्म का लेप करते हैं तथा मुंडमाल धारण करते हैं। यह सारे गुण ही अशुभ एवं भयावह जान पड़ते हैं। तब भी हे श्मशान निवासी आपके भक्तो को आप इस स्वरूप में भी शुभकारी एव आनंददायी ही प्रतीत होते हैं क्योंकि हे शंकर आप मनोवांछित फल प्रदान करने में तनिक भी विलम्ब नहीं करते।

मनः प्रत्यक् चित्ते सविधमविधायात्त-मरुतः
प्रहृष्यद्रोमाणः प्रमद-सलिलोत्सङ्गति-दृशः ।
यदालोक्याह्लादं ह्रद इव निमज्यामृतमये
दधत्यन्तस्तत्त्वं किमपि यमिनस्तत् किल भवान् ॥ २५ ॥

हिंदी अर्थ : हे योगिराज! मनुष्य नाना प्रकार के योग्य पद्धति को अपनाते हैं जैसे की सांस पर नियंत्रण, उपवास, ध्यान इत्यादि। इन योग क्रियाओं द्वारा वो जिस आनंद, जिस सुख को प्राप्त करते हैं वह वास्तव में आप ही हैं। हे महादेव!!!

त्वमर्कस्त्वं सोमस्त्वमसि पवनस्त्वं हुतवहः
त्वमापस्त्वं व्योम त्वमु धरणिरात्मा त्वमिति च ।
परिच्छिन्नामेवं त्वयि परिणता बिभ्रति गिरं
न विद्मस्तत्तत्त्वं वयमिह तु यत् त्वं न भवसि ॥ २६ ॥

हिंदी अर्थ : हे प्रभु ! आप ही सूर्य, चन्द्र, धरती, आकाश, अग्नि, जल एवं वायु हैं। आप ही आत्मा भी हैं। हे देव मुझे ऐसा कुछ भी ज्ञात नहीं जो आप न हों।

त्रयीं तिस्रो वृत्तीस्त्रिभुवनमथो त्रीनपि सुरान्
अकाराद्यैर्वर्णैस्त्रिभिरभिदधत् तीर्णविकृति ।
तुरीयं ते धाम ध्वनिभिरवरुन्धानमणुभिः
समस्त-व्यस्तं त्वां शरणद गृणात्योमिति पदम् ॥ २७ ॥

हिंदी अर्थ : हे सर्वेश्वर!!! ॐ तीन तत्वों से बना है अ, ऊ, मं जो तीन वेदों (ऋग, साम, यजु), तीन अवस्था (जाग्रत, स्वप्न, सुशुप्त), तीन लोकों, तीन कालों, तीन गुणों तथा त्रिदेवों को इंगित करता है। हे ॐकार आपही इस त्रिगुण, त्रिकाल, त्रिदेव, त्रिअवस्था, और त्रिवेद के समागम हैं।

भवः शर्वो रुद्रः पशुपतिरथोग्रः सहमहान्
तथा भीमेशानाविति यदभिधानाष्टकमिदम् ।
अमुष्मिन् प्रत्येकं प्रविचरति देव श्रुतिरपि
प्रियायास्मैधाम्ने प्रणिहित-नमस्योऽस्मि भवते ॥ २८ ॥

हिंदी अर्थ : हे शिव, वेद एवं देवगन आपकी इन आठ नामों से वंदना करते हैं – भव, सर्व, रूद्र, पशुपति, उग्र, महादेव, भीम, एवं इशान। हे प्रभु मैं भी आपकी इन नामों से स्तुति करता हूं।

नमो नेदिष्ठाय प्रियदव दविष्ठाय च नमः
नमः क्षोदिष्ठाय स्मरहर महिष्ठाय च नमः ।
नमो वर्षिष्ठाय त्रिनयन यविष्ठाय च नमः
नमः सर्वस्मै ते तदिदमतिसर्वाय च नमः ॥ २९ ॥

हिंदी अर्थ : हे त्रिलोचन, आप अत्यधिक दूर हैं और अत्यंत पास भी, आप महाविशाल भी हैं तथा परमसूक्ष्म भी, आप श्रेठ भी हैं तथा कनिष्ठ भी। आप ही सभी कुछ हैं साथ ही आप सभी कुछ से परे भी हैं।

बहुल-रजसे विश्वोत्पत्तौ भवाय नमो नमः
प्रबल-तमसे तत् संहारे हराय नमो नमः ।
जन-सुखकृते सत्त्वोद्रिक्तौ मृडाय नमो नमः
प्रमहसि पदे निस्त्रैगुण्ये शिवाय नमो नमः ॥ ३० ॥

हिंदी अर्थ : हे भव, मैं आपको रजोगुण से युक्त सृजनकर्ता जान कर आपका नमन करता हूं। हे हर, मैं आपको तामस गुण से युक्त, विलयकर्ता मान आपका नमन करता हूं। हे मृड, आप सतोगुण से व्याप्त सभी का पालन करने वाले हैं। आपको नमस्कार है। आप ही ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश हैं। हे परमात्मा, मैं आपको इन तीन गुणों से परे जान कर शिव रूप में नमस्कार करता हूं।

कृश-परिणति-चेतः क्लेशवश्यं क्व चेदं
क्व च तव गुण-सीमोल्लङ्घिनी शश्वदृद्धिः ।
इति चकितममन्दीकृत्य मां भक्तिराधाद्
वरद चरणयोस्ते वाक्य-पुष्पोपहारम् ॥ ३१ ॥

हिंदी अर्थ : हे प्रभु आप गुणातीत हैं और आपका विस्तार नित बढ़ता ही जाता है। अपनी सीमित क्षमता से मैं कैसे आपकी वंदना कर सकता हूं? पर भक्ति से ये दूरी मिट जाती है तथा मैं आपने कर कमलों में अपनी स्तुति प्रस्तुत करता हूं।

असित-गिरि-समं स्यात् कज्जलं सिन्धु-पात्रे
सुर-तरुवर-शाखा लेखनी पत्रमुर्वी ।
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं
तदपि तव गुणानामीश पारं न याति ॥ ३२ ॥

हिंदी अर्थ : हे प्रभु, यदि नीले पर्वत को समुद्र में मिला कर स्याही तैयार की जाए, देवताओं के उद्यान के वृक्ष की शाखाओं को लेखनी बनाया जाए और पृथ्वीको कागद बनाकर भगवती शारदा देवी अर्थात सरस्वती देवी अनंतकाल तक लिखती रहें तब भी हे प्रभो! आपके गुणों का संपूर्ण व्याख्यान संभव नहीं होगा

असुर-सुर-मुनीन्द्रैरर्चितस्येन्दु-मौलेः
ग्रथित-गुणमहिम्नो निर्गुणस्येश्वरस्य ।
सकल-गण-वरिष्ठः पुष्पदन्ताभिधानः
रुचिरमलघुवृत्तैः स्तोत्रमेतच्चकार ॥ ३३ ॥

हिंदी अर्थ : हे प्रभु ! आप सुर, असुर और मुनियों के पूजनीय है, आपने मस्तक पर चंद्र को धारण किया है, और आप सभी गुणों से परे है। आपकी इसी दिव्य महिमा से प्रभावित होकर मैं, पुष्पंदत गंधर्व, आपकी स्तुति करता हूँ

अहरहरनवद्यं धूर्जटेः स्तोत्रमेतत्
पठति परमभक्त्या शुद्ध-चित्तः पुमान् यः ।
स भवति शिवलोके रुद्रतुल्यस्तथाऽत्र
प्रचुरतर-धनायुः पुत्रवान् कीर्तिमांश्च ॥ ३४ ॥

हिंदी अर्थ : पवित्र और भक्तिभावपूर्ण हृदय से जो मनुष्य इस स्तोत्र का नित्य पाठ करेगा, तो वो पृथ्वीलोक में अपनी इच्छा के अनुसार धन, पुत्र, आयुष्य और कीर्ति को प्राप्त करेगा। इतना ही नहीं, देहत्याग के पश्चात् वो शिवलोक में गति पाकर शिवतुल्य शांति का अनुभव करेगा । शिवमहिम्न स्तोत्र के पठन से उसकी सभी लौकिक व पारलौकिक कामनाएँ पूर्ण होंगी।

महेशान्नापरो देवो महिम्नो नापरा स्तुतिः ।
अघोरान्नापरो मन्त्रो नास्ति तत्त्वं गुरोः परम् ॥ ३५ ॥

हिंदी अर्थ : शिव (महेश) से श्रेष्ठ कोई देव नहीं, महिम्न स्तोत्र से श्रेष्ठ कोई स्तोत्र नहीं, ॐ से बढकर कोई मंत्र नहीं तथा गुरु से उपर कोई सत्य नहीं।

दीक्षा दानं तपस्तीर्थं ज्ञानं यागादिकाः क्रियाः ।
महिम्नस्तव पाठस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥ ३६ ॥

हिंदी अर्थ : दान, यज्ञ, ज्ञान एवं त्याग इत्यादि सत्कर्म इस स्तोत्र के पाठ के सोलहवें अंश के बराबर भी फल नहीं प्रदान कर सकते।

कुसुमदशन-नामा सर्व-गन्धर्व-राजः
शशिधरवर-मौलेर्देवदेवस्य दासः ।
स खलु निज-महिम्नो भ्रष्ट एवास्य रोषात्
स्तवनमिदमकार्षीद् दिव्य-दिव्यं महिम्नः ॥ ३७ ॥

हिंदी अर्थ : कुसुमदंत नामक गंधर्वों का राजा चंद्रमौलेश्वर शिव जी का परम भक्त था। अपने अपराध (पुष्प की चोरी) के कारण वह अपने दिव्य स्वरूप से वंचित हो गया तब उसने इस स्तोत्र की रचना कर शिव को प्रसन्न किया तथा अपने दिव्य स्वरूप को पुनः प्राप्त किया।

सुरगुरुमभिपूज्य स्वर्ग-मोक्षैक-हेतुं
पठति यदि मनुष्यः प्राञ्जलिर्नान्य-चेताः ।
व्रजति शिव-समीपं किन्नरैः स्तूयमानः
स्तवनमिदममोघं पुष्पदन्तप्रणीतम् ॥ ३८ ॥

हिंदी अर्थ : जो मनुष्य अपने दोनों हाथों को जोड़कर, भक्तिभावपूर्ण, इस स्तोत्र का पठन करेगा, तो वह स्वर्ग-मुक्ति देनेवाले, देवता और मुनिओं के पूज्य तथा किन्नरों के प्रिय ऐसे भगवान शंकर के पास अवश्य जायेगा। पुष्पदंत द्वारा रचित यह स्तोत्र अमोघ और निश्चित फल देनेवाला है।

आसमाप्तमिदं स्तोत्रं पुण्यं गन्धर्व-भाषितम् ।
अनौपम्यं मनोहारि सर्वमीश्वरवर्णनम् ॥ ३९ ॥

हिंदी अर्थ : पुष्पदंत गन्धर्व द्वारा रचित ये स्तोत्र दोषरहित है तथा इसका नित्य पाठ करने से परम सुख की प्राप्ति होती है।

इत्येषा वांमयी पूजा श्रीमच्छङ्कर-पादयोः ।
अर्पिता तेन देवेशः प्रीयतां मे सदाशिवः ॥ ४० ॥

हिंदी अर्थ : हे प्रभु ! वाणी के माध्यम से की गई मेरी यह पूजा आपके चरणकमलों में सादर अर्पित है । कृपया इसका स्वीकार करें और आपकी प्रसन्नता मुझ पर बनाये रखें।

तव तत्त्वं न जानामि कीदृशोऽसि महेश्वर ।
यादृशोऽसि महादेव तादृशाय नमो नमः ॥ ४१ ॥

हिंदी अर्थ : हे शिव! मैं आपके वास्तविक स्वरुप को नहीं जानता। हे शिव आपके उस वास्तविक स्वरूप जिसे मैं नहीं जान सकता उसको नमस्कार है।

एककालं द्विकालं वा त्रिकालं यः पठेन्नरः ।
सर्वपाप-विनिर्मुक्तः शिव लोके महीयते ॥ ४२ ॥

हिंदी अर्थ : जो इस स्तोत्र का दिन में एक, दो या तीन बार पाठ करता है वह सर्व प्रकार के पाप से मुक्त हो जाता है तथा शिव लोक को प्राप्त करता है।

श्री पुष्पदन्त-मुख-पङ्कज-निर्गतेन
स्तोत्रेण किल्बिष-हरेण हर-प्रियेण ।
कण्ठस्थितेन पठितेन समाहितेन
सुप्रीणितो भवति भूतपतिर्महेशः ॥ ४३ ॥

हिंदी अर्थ : पुष्पदंत द्वारा रचित ये स्तोत्र शिव जी अत्यंत ही प्रिय है। इसका पाठ करने वाला अपने संचित पापों से मुक्ति पाता है।

।। इति श्री पुष्पदंत विरचितं शिवमहिम्नः स्तोत्रं (Shiv Mahimna Stotram) समाप्तम्।।

Shiv Mahimna Stotram Lyrics inGujarati – શિવ મહિમ્ન સ્તોત્ર

પુષ્પદંત ઉવાચ ||

મહિમ્ન: પાર તે પરમ વિદુષો યદ્યયસદશો સ્તુતિ બ્રહ્માદિનામપિ તદવસન્નાસ્ત્વયિ ગિર: |
અથાડવાચ્યા: સર્વ: સ્વમતિ પરિમાવધિ ગૃણન્ મમાપ્યેવ સ્તોત્રે હર: નિરપવાદ: પરિકર: || 1 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ભગવાન ! આપના નિર્ગુણ સ્વરૂપના મહિમાનો પાર પુરુષો જાણતા નથી, કારણકે આપના નિર્ગુણ સ્વરૂપ મનવાણીથી પર છે, તેમજ આપને પુરુષોએ કરેલી સ્તુતિ પણ વર્ણવી શકતી નથી. બ્રહ્માદિનો સંસ્કૃતભાષાનો શબ્દભંડાર પણ આપનું નિર્ગુણ સ્વરૂપ વર્ણવી શકતો નથી. બ્રહ્માદિકની વાણી પણ હે હર ! તમને વર્ણવવા માટે સમર્થ નથી, પક્ષી જેમ પોતપોતાની શક્તિ પ્રમાણે ઊડે છે, તે જ પ્રમાણે સર્વ જન પોતપોતાની બુદ્ધિને અનુસરીને આપની સ્તુતિ કરે છે. તેથી સર્વે સ્તુતિ કરનારાઓ તેમનો દોષ હોય તો પણ નિર્દોષ છે, આ મહિમ્નસ્તોત્ર બાબત મારો પ્રયત્ન પણ તે જ દ્રષ્ટિનો નિર્દોષ છે.

અતીત: પંથાન તવ ચ મહિમા વાડમનસયો –રતદ્વયાવૃત્યા યં ચકિતમભિધત શ્રુતિરપિ
સંકરસ્ય સ્તોતવ્ય: કતિવિધગુણ: કસ્ય વિષય: પદે ત્વાર્ચાચીને પતિત ન મન: કસ્યા ન વચ: || 2 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ભગવાન ! આપનો મહિમા, મન તથા વાણી વડે જાણવામાં આવતો નથી અને આપના મહિમાનું શ્રુતિઓ પણ ગૌરવપૂર્વક એ જ રીતનું વર્ણન કરે છે. વાક્ય વડે ભેદ સગુણ સ્વરૂપનો નિષેધ કરવા છતાં બીજા અર્થ વડે સગુણ વસ્તુનું પ્રતિપાદન પણ કરે છે. આપનો એ રીતનો અપાર મહિમા વર્ણવવાને કોઈ પુરુષ શક્તિમાન નથી. તેમજ આપ કોઈપણ પુરુષને ઈન્દ્રિયગોચર પણ નથી. આમ તમારું નિર્ગુણ સ્વરૂપ બધાને અગમ્ય છે અને તમારા સગુણ સ્વરૂપને વર્ણવવા માટે સંસ્કૃતાદિ ભાષાઓમાં શક્તિ નથી, તે છતાં તમારા સગુણ સ્વરૂપની તો શંકર ! બધા જ સ્તુતિ કરે છે.

મધુસ્કીતા વાચ: પરમમૃતં નિર્મિતવત્ સ્તવ બ્રહ્મનિક વાગપિ સુરગુરોર્વિસ્મય પદમ્ |
મમ ત્વેતા વાણી ગુણકથનપુણ્યેન ભવત: પુનામીત્યર્થેડસ્મિનપુરમથન ! બુદ્ધિર્વ્યોચસિતા: || 3 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ભગવાન ! મારી સ્તુતિ તમને કોઈ પણ પ્રકારે યથાર્થ વર્ણવી શકતી નથી, કારણકે તમે વેદોની મધ જેવી મધુર વાણીનો રચાયિતા છો. હે ભગવાન ! વાણીના ભંડાર રૂપ બ્રહ્માદિની સ્તુતિ પણ ખુશ ન કરી શકે, તો મારી સ્તુતિ તમને ક્યાંથી સંતોષ આપી શકે ? હું આ બધું જાણું છું. છતાં તમારી સ્તુતિ કરું છું, કારણ એ છે કે, હું તમારા સ્તવનથી મારી વાણીને નિર્મળ કરું છું એમ જ હું માનું છું. મારી વાણીથી તમે આનંદ પામો એ મારી ધરણા જ નથી. આ જ કારણથી હું તમારી સ્તુતિ કરવા પ્રવૃત્ત થયો છું.

તવૈશ્વર્ય યત્તજયગદુદયરક્ષાપ્રલયકૃત ત્રયી વસ્તુ વ્યસતં તિસૂષુ ગુણભિન્નાસુ તનુષુ |
અભવ્યાનામસ્મિન્વરદ ! રમણોયામરમણી વિરંતુ વ્યક્તોશીં વિદધત ઈહૈકે જડધિય || 4 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ભગવાન ! આપનું ઐશ્વર્ય જુદે જુદે રૂપે જુદા જુદા ગુણોએ કરીને બ્રહ્મા, વિષ્ણુ અને મહેશ – એ ત્રણે વ્યક્તિમાં આરોપિત છે. અને તે બ્રહ્મા વિષ્ણુ તથા રુદ્ર, સત્વ, રજસ અને તમસ –એ ત્રણે ગુણો વડે જુદે જુદે રૂપે પ્રતિત થાય છે. વળી, એ ઐશ્વર્ય ત્રણે લોકથી ઉત્પત્તિ સ્થિતિ તથા ત્રણેનો પ્રલય કરવા છતાં બ્રહ્મા, વિષ્ણુ તથા રુદ્ર રૂપે રહે છે. હે ભગવાન ! તમારું રૂપ ન સમજી શકવાના કારણથી જડબુદ્ધિવાળાઓ આપના ઐશ્વર્યની નિન્દા કરે છે, અને નિંદા પાપી પુરુષોને લાગે છે, પરંતુ આપના સર્વજ્ઞાતિ ગુણયુક્ત ઐશ્વર્યની નિંદા શુદ્ધ મુમુક્ષુઓને અતિ અપ્રિય લાગે છે.

કિમીહ: કિકાર્ય સ ખલુ કિમુપાયસ્ત્રિભુવનં કિમાધારો ધાતા સૂજતિ વિમૂપાક્ષ ન ઈતિ ચ |
આતકયૈશ્વર્થે તવય્યનવ સરયુ:સ્યો હતવિય: કુતર્કોર્ય કાશ્રિન્સુખરયતિ મોહાય જગત: || 5 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ભગવાન ! પરમેશ્વર ત્રણ ભુવનની ઉત્પત્તિ કરે છે. પરંતુ જડબુદ્ધિવાળાઓ ‘જગતને ઉત્પન્ન કરવા બાબત શી ક્રિયા થતી હશે, તે ક્રિયા ક્યા પ્રકારની હશે, તેના અમલમાં ક્યા ક્યા પ્રકારો યોજાયા હશે, જગતનો આધાર તણા જગતને ઉત્પન્ન કરવામાં નિમિત્ત અને ઉપાદાન કારણ શું હશે ?’ આવો કુતર્ક કરે છે, પ્રભુ, એ કુતર્કનું તાત્પર્ય એ છે કે, જગતભરના આપણા ભક્તોના ચિત્તને ભ્રમણા પમાડવી. આપને વિષે આવા કુતર્ક એ જ અયોગ્ય છે, કારણકે આપ તો અચિંત્ય માહાત્મયથી યુક્ત છો.

અજન્માનો લોકા: કિમવ વંતોડપિ જગતા મધિષ્ઠાતરં કિં ભવવિધિરનાદત્ય ભવતિ |
અનીશો વા કુર્યાદભુવનજનને ક: પરિકરો વ તો મદાસત્વા પ્રત્યમરવર ! સંશેરક ઈમેં || 6 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ભગવાન ! આપ સર્વદેવોમાં શ્રેષ્ઠ છો, છતાં ‘આ દ્રશ્યમાન સપ્તલોક સાકાર છે. આમ જગત સાકાર હોવા છતાં અજન્મા હશે એ સંભવિત નથી, કારણકે જે સાકાર વસ્તુ છે તેનો જન્મ પણ હોય છે જ. જેમ ઘડો સાકાર છે, તેથી તે ઉત્પત્તિમાન છે, તેમ આ જગત અધિષ્ઠાન પરમેશ્વરની અપેક્ષા વગર ઉત્પન્ન કેવી રીતે થયું હશે, ઈશ્વર સિવાય બીજો કોઈ જગતકર્તા હશે !’ બ્રહ્માંડને ઉત્પન્ન કરવામાં આપ વિષે અનેક પ્રકારના સંદેહ મૂઢજનોમાં થાય છે. પરંતુ આપને વિષે સંશય કરવો યોગ્ય નથી. તેમજ આપ કરતાં બીજો કોઈ સમર્થ પણ નથી.

ત્રયી સાંખ્યયોગ: પશુપતિમતં વૈષ્ણનમિતિ પ્રભિન્ને પ્રસ્થાને પરમિદમદ: પથ્યમિતિ ચ |
રુચિનાં વૈચિત્ર્યાદ્દજકુટિલનાનાપથનુષાં નૃણાંમેકો ગમ્યસ્ત્વસિ પયસામર્ણવ ઈત્ર || 7 ||

ગુજરાતી અર્થ : ત્રણ વાક્યો વડે ત્રણ વેદ તમારી પ્રાપ્તિનો માર્ગ બતાવે છે. સાંખ્ય વડે કપિલ, યોગશાસ્ત્રદ્વારા પતંજલિમુનિ તથા ન્યાય વૈશેષિક શાસ્ત્રદ્વારા ગૌતમ કણાદમુનિ પશુપતિ વડે શૈવો, તથા નારદ-જેઓ ‘નારદપંચરાત્ર’ ના રચનાર છે તેઓ વૈષ્ણવ મત દ્વારા તમારી પ્રાપ્તિના ભિન્ન ભિન્ન માર્ગ બતાવે છે. આ મુખ્ય પાંચ ભેદ છે. અને સકલ મતવાદીઓ અહંકાર વડે પોતપોતાના સિદ્ધાંતને જુદા માને છે, પરંતુ જેમ સર્વ નદીઓના જળ પૃથક્ પૃથક્ માર્ગો વડે એક સમુદ્રમાં મળી જાય છે તેમ અધિકારી ભેદ વડે આપ એક પ્રભુ સઘળા જ મુમુક્ષુઓને પ્રાપ્ત થાઓ છો.

મહોક્ષ: ખટવાંગં પરશુરજિનં ભસ્મ ફણિન: કપાલં ચતીયતવ વરદ ! તંત્રીપકરણમ્ |
સુરાસ્તાં તામૃદ્ધિ દધતિ તુ ભવદભ્રૂપ્રણિહિતાં નહિ સ્વાત્મારામ વિષયમૃગતૃષ્ણા ભ્રમયતિ || 8 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે વરદાન આપનાર : નંદી ખટવાંગ ફરશી, વ્યાધચર્મ, ભસ્મ, સર્પ, કપાળ વગેરે તારા જીવનનિર્વાહનાં સાધનો છે. છતાં તેં આપેલી સંપત્તિને રાજાઓ પણ ભોગવે છે. અભયના દાતા ! વિષયો ઝાંઝવાના જળ જેવા છે. તે આત્માથી જ પ્રસન્ન એવા યોગીને બ્રહ્મનિષ્ઠાથી ચલાયમાન કરી શકતા નથી.

ધૃવં કશ્ચિત્સર્વં સફલમપરસ્ત્વદધૃવમિદં પરો ધ્રૌવ્યાધ્રૌવ્યે જગતિ ગદતિ વ્યસ્તવિષયે |
સમસ્તેષ્યેતસ્મિન્પુરમથન ! તેવિ સ્મિત ઈવ સ્તુવન્જિહોમ ત્વાં ન ખલુ નનુ ધૃષ્ટા મુખરતા || 9 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે પુરમથન ! કેટલાક સાંખ્ય અને પાતંજલ મતવાળા મિમાંસકો સર્વ જગતને નિત્ય અનિત્ય માને છે, બીજા મતવાળા નાસ્તિકો આ જગતને નિત્યાનિત્ય માને છે. એ રીતે ભિન્ન ભિન્ન મતવાદી લોકો આ જગતને ભિન્ન ભિન્ન પ્રકૃતિ માને છે. આ ભિન્ન ભિન્ન મતોવાળા તમારા સ્વરૂપને જાણતાં નથી. તેમજ હું પણ સ્વરૂપને જાણતો નથી. તો હું મારી હાંસી થવાનો ભય તજીને તમારી જ પ્રાર્થના મારા શબ્દોથી કરું છું.

તવૈશ્વર્ય યત્નાધદુપર વિરંચિહરિરધ: પરિચ્છેતુંયાતાવતલમનલસ્કંધવપુષ: |
તતો ભક્તિશ્રદ્ધા ભરગુરૂગણદભ્યાં ગિરિશ ! યત્ સ્વયંતસ્થેતાભ્યાંતવકિથમુવૃતિન ફલતિ || 10 ||

ગુજરાતી અર્થ : આપના ઐશ્વર્યનો અંત લેવા સારુ બ્રહ્મદેવ આકાશ તરફ અને વિષ્ણુ પાતાળમાં ગયા હતા. પરંતુ ઉભયમાંના કોઈને પણ આપની લીલાનો અંત પ્રાપ્ત થયો નહિ, કારણકે આપ પ્રભુ તો વાયુ અને અગ્નિ છો, તેમાં વાયુગત્વગયંત લિંગનું મૂળ છે. બ્રહ્મદેવ માત્ર બ્રહ્માંડના અને વિષ્ણુ માત્ર જળ તત્વના નિવાસ છે. માટે આપનું ઐશ્વર્ય જાણવાને કોઈ સમર્થ થતા નથી. અને એ બ્રહ્મા વિષ્ણુના અંતરમાં આપ સ્વત: પ્રાકટ્ય માનો છો. તેથી જ બ્રહ્મા અને વિષ્ણુ શ્રદ્ધા અને ભક્તિ વડે આપની સ્તુતિ કરે છે. હે ભગવાન ! આપની સેવા ફળની પ્રાપ્તિ કરતી નહિ હોય, એમ માનવું એ કેવળ મૂર્ખતા છે. આપ ઈશ્વરની ભક્તિ તો સાક્ષાત્ પરંપરાગત ફળને આપનારી છે.

અત્યનાપાદાપાદ્ય ત્રિભુવનમવૈરતધ્યતિકરં દશાસ્યો દયબાહૂનમૃત રણકુંડપરવશાન |
શિર: પદ્મશ્રણી રચિતચરણામ્ભોરુંહબલે સ્થિરાયાસ્ત્વબદભક્તસ્ત્રિપૂરંહર ! વિસ્ફૂર્જિતમિદમ્ || 11 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ત્રિપુરવિનાશક ! યુદ્ધની ઈચ્છાને લીધે સદા ઉન્મત થઈ રહેલા વીસ હજાર ભુજાઓ યુક્ત રાવણને યંત્રહિતપણે નિ:શત્રુયુક્ત ત્રિભુવનનું રાજ્ય પરાક્રમ માત્ર આપની સ્થિર ભક્તિને જ આભારી છે. એ ભક્તિ એવી છે કે, રાવણે પોતાનાં દશ મસ્તક પોતાની હાથે જ છેદી, તેની પંક્તિ કરી કમળની પેઠે આપ પ્રભુને ચરણે બલિદાન આપ્યાં હતાં. વિશેષ કરીને આપનું પૂજન સકળ વસ્તુની અધિકતાથી પ્રાપ્ત થવાના હેતુ રૂપે છે.

અમુષ્ય ત્વસેવાસમધિગતસાર ભુજવનં બલાત્કેલાસેડપિ ત્વદધિવસંતૌ વિક્રમયત: |
અલભ્યા પાતાલેડપ્યલસચલિતાંગુષ્ઠશિરસિ પ્રતિષ્ઠા ત્વય્યાસીદધ્રુવમુપચિતો મુહયતિ ખલ: || 12 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ભગવાન ! રાવણ આપની સમીપ કૈલાસમાં વસતો હતો, ત્યારે પણ તે પોતાની વીસ ભુજાઓનું પરાક્રમ દેખાડતો હતો. આપના બળને લીધે એ પાતાળમાં ટકી શક્યો નહિ. આપની સેવાભક્તિને લીધે રાવણને બળ પ્રાપ્ત થયું. રાવણના મસ્તક પર અનાયાસે અંગૂઠાનો ભાર રાવણથી સહન ના થવાથી પાતાળમાં રહેવાયું નહિ. વિશેષ કરીને પારકા ઐશ્વર્યને પામેલા જે દુષ્ટ જન મોત પામે, તેમને મહાપુરુષની કૃપા ફલદાતા થતી નથી.

યદ દ્વિં સુત્રામણો વરદ ! પરમોચ્ચેરપિ સતી મધશ્ચકે બાણ: પરિજનવિધેયત્રિભુવન: |
ન તિચ્ચિત્રં તસ્મિન્વરિવસિતરિ ત્વચ્વરણયોનં કસ્યાં ઉન્નત્મૈ ભવતિ શિરસ્ત્વન્યવનતિ || 13 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે વરદાતા પ્રભુ ! ઈન્દ્રથી પણ અતિ ઉત્કૃષ્ટ સમૃદ્ધિથી ભરેલા આ ત્રણે ભુવનોને દાસત્વપણે વરતાવનારો બાણાસુર પાતાળમાં લઈ ગયો હતો એમાં કોઈ આશ્ચર્ય નથી. કારણ કે તે આપણાં ચરણની પૂજા કરનારો હતો, જે જનો આપને વંદે છે, તેઓને ફળની પ્રાપ્તિ થાય છે એ પ્રત્યક્ષ છે.

અકાંડ બ્રહ્માંડ ક્ષયચકિતદેવાસુરકૃપા -વિધેયયસ્યાસીધસ્ત્રિમયન વિષં સંહૃસવત: |
સ કલ્માષ: કંઠે તવ ન કુરુતે ન શ્રિયમહો વિકારોડપિશ્લાધ્યો ભુવનમયભગડ યસનિન: || 14 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ત્રિનયન ! આપે કૃષ્ણ પડુંર વર્ણના વિષનું પાન કર્યું છતાં એ વિષ આપના કંઠમાં જ સ્થિર રહ્યું હોવાથી તે આપને અતિશય શોભા આપે છે. કાળ સમયે આવેલા બ્રહ્માંડ નાશને દેખીને દેવો તથા અસુરો ભય પામવા લાગ્યા. તેમજ દેવ તથા અસુરોના કલેશના સારું આપે કૃપા કરીને વિષનું પાન કર્યું તો પ્રભુ ! સંસારીજનોનાં દુ:ખ દૂર કરવાનું આપને વ્યસન જ છે.

અસિદ્ધાર્થા નૈવ કચિદપિ સદેવાસુરનરે નિવર્તન્તે નિત્યં જગતિ જયિનો યસ્ય વિશિખા:
સ પશ્યન્નીશ ! ત્વામિતરસુધારણમભૂત સ્મર: સ્મર્તવ્યાત્માન હિ વિશિષુ પથ્ય: પરિભવ: || 15 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ઈશ ! કામદેવનું બાણ ભાલા રહિત છે. તેનું બાણ આ જગતમાં દેવ અસુર તથા નરલોકને જીતવાને નિષ્ફળ ન થતાં સર્વને વશ કરે છે. આપની સાથે પણ કામદેવ બીજા ઈન્દ્રાદિદેવોની પેઠે વર્તવા લાગ્યો છે, તેથી તેનું આપે દહન કર્યું અને સ્મરણ માત્રનું જ કામદેવનું શરીર બાકી રાખ્યું. એ કનિષ્ટ થયો એનું કારણ માત્ર જિતેન્દ્રિય પુરુષોને ભય પમાડવાનું છે. એ સુખનો હેતુ નથી, કારણકે ઈશ્વરનો અનાદર એ વિનાશકારક છે.

મહી પાદાતાદ વ્રજતિ સહસા સંશયપદં પદં વિષ્ણોર્ભ્રામ્યદ ભુજપરિઘરૂગ્ણગ્રહણમ્ |
મુહુધૌ દૌસ્થ્યં યાત્યનિભૃતિજટાનાડિતતટા જગદ્રક્ષાયૈત્વં નટસિ નનું વામય વિભુતા || 16 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ભગવાન ! આપે જગતનાં રક્ષણ તથા દુષ્ટોના નાશને અર્થે, પૃથ્વી ઊંચી નીચી થવા લાગી હતી એવું તમે નૃત્ય કર્યું. તાંડવ નૃત્ય વખતે હાવભાવ માટે આપે ભુજાઓ હલાવી તેના આઘાતથી વિષ્ણુલોક, તારા, નક્ષત્રો આદિનો નાશ થવાની શંકા થવા લાગી અને ઉભયસ્વર્ગદ્વાર વ્યથા પામ્યાં. તેમજ તમારા નૃત્યથી સ્વર્ગનું એક પાસુ તાડિત થયું. આપનું એ ઐશ્વર્ય દેખીતી રીતે વિપરીત છે, તો પણ તે જગતની રક્ષા માટે જ છે.

વિયદવ્યાપી તારાગણ ગુણિત તેનાન્દ્રરૂચિ: પ્રવાહો વારાં ય: પૃષતલઘુડદ્રષ્ટ શિરસિ તે |
જગદદ્વીપાકારં જલધિવલયં તેન કૃતમિ ત્વનેનંનોન્નેર્યું ધૃતમહિમ ! દિવ્યં તવ વપુ: || 17 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે જગદાધાર ! આપના શરીર પર ગંગાનો મહાન પ્રવાહ ઝીણી ફરફરની પેઠે વરસતો દેખાય છે. તેથી તમારા વિરાટ સ્વરૂપનું ભાન થાય છે. આ જળ પ્રવાહના આકાશવત્ વ્યાપક અને તારા તથા નક્ષત્રોના સમૂહમાં ફીણ સમાન છતાં તેનો ભાસ થાય છે. જેમ નગરની પાછળ ચોતરફ ખાઈ હોય છે તેમ જ ગંગાના એ પ્રવાહે પૃથ્વીની ચોતરફ સર્વ જગતને આવરણ કર્યું છે, એથી આપના વિરાટ શરીરને અનુમાનથી જાણી શકાય છે કે, આપનું શરીર દિવ્ય પ્રભાયુક્ત છે.

રથ ક્ષોણિ યંતા શતધતિરંગેંદ્રો ધનુરથો રથાંગે ચંદ્રાર્કૌ રથચરણપાણિ: શિર ઈતિ |
દિઘક્ષોસ્તે કોડ્યં ત્રિપુરતૃણમાંડબર વિધિ વિધેયૌ: ક્રોડન્ત્યો ન ખલુ પર તંત્રા: પ્રભુધિય: || 18 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે દેવ ! જે સમયે ત્રિપુરને દહન કરવાની આપની ઈચ્છા થઈ તે સમયે પૃથ્વીરૂપી રથ, બ્રહ્મરૂપી સારથી, હિમાચળ પર્વતરૂપી ધનુષ, સૂર્ય તથા ચંદ્રરૂપી રથનાં પૈંડાં, જળરૂપી રથચરણ એટલે રથની પિંજણીઓ તથા વિષ્ણુરૂપી બાણ યોજીને તમે ત્રિપુરને હણ્યો. હે પ્રભુ ! બળ, વીર્ય શક્તિ તથા બુદ્ધિ થકી યુક્ત પુરુષો નિશ્ચય કરીને પરાધીનપણે ક્રીડા ન કરતાં, તમારી જ શક્તિથી યશ આનંદ મેળવે છે.

હરિસ્તે સહસ્ત્રં કમલબલિમા ધાય પદયો ર્યદેકોનં તસ્મિન્નિજમુદહરન્નેત્રકમલમ્ |
ગતો ભક્ત્યુદ્રેક: પારિણતિમસૌ ચક્રવપુષા ત્રયાણાં રક્ષાયૈ ત્રિપુરહર ! જાગર્તિ જગતામ્ || 19 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ત્રિપુરહર ! આપની ચરણની પૂજા વિષ્ણુ સહસ્ત્ર કમળ વડે કરવા લાગ્યા ! તેમાં એક કમળ ઓછું હોય તો પોતાના નેત્ર કમળની તુલ્ય સંકલ્પ કરીને અથવા પોતાના શરીરના કોઈપણ બીજા અવયવ આપને અર્પણ કરતા હતા. આવી દઢ ભક્તિને લીધે ચક્રરૂપ ધારણ કરીને સ્વર્ગ કરીને મૃત્યુ તથા પાતાળ – એ ત્રણે લોકનું રક્ષણ આપ જ કરો છો. એ રીતે સુદર્શનચક્રની શક્તિ વિષ્ણુને આપે જ આપેલી છે.

ક્રતૌ સુપ્તે જાગ્રત્વમસિ ફલયોગે ઋતુમત્તાં કવ કર્મ પ્રધ્વસ્તં ફલતિં પુરુષારાધનમૃતે |
અતસ્ત્વાં સંપ્રેક્ષ્ય ઋતુષુ ફલદાનપ્રતિભૂવં શ્રુતૌ શ્રદ્ધાંબદ્ધાંકૃતપરિકર: કર્મ સુજન: || 20 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ત્રિલોકના સ્વામી ! યજ્ઞાદિ ક્રિયાઓ પૂરી થઈ ગયા પછી, ઘણે વખતે અને જે દેશમાં યજ્ઞ કર્યો હોય તેનાથી બીજે જ સ્થળે તથા આ જન્મમાં કરેલા યજ્ઞાદિ ક્રિયાઓનું ફળ બીજા જન્મમાં પણ અર્પવાને તું હંમેશાં જાગ્રત રહે છે. ચેતનરૂપ ઈશ્વરની આરાધનાથી અને તેને પ્રસન્ના કર્યાથી યજ્ઞનાં બધાં ફળો મળે છે. હે પ્રભો ! તું સર્વવ્યાપી છે. તારી ઈચ્છા વગર તૃણ પણ હાલી શકતું નથી. આથી યજ્ઞાદિ કર્યોનાં ફળ આપવામાં તેમને આધારભૂત માનીને લોકો શ્રુતિ વગેરે શાસ્ત્રમાં શ્રદ્ધા રાખી કાર્યનો આરંભ કરે છે.

ક્રિયા દક્ષો દક્ષ: ક્રતુપતિરધીશસ્તનુભૃતાં ઋષીણામાર્ત્વિજય શરણદ ! સદસ્યા સુરગણા: |
ઋતુભ્રંષસ્ત્વત્ત: ઋતુફલવિધનવ્યસનિને ધ્રૂવં કર્તુ: શ્રદ્ધા વિધુરમભિચારાય હિ મખા: || 21 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે શરણે આવનારને શરણ આપનારા યજ્ઞાદિ તત્કર્મો કરવામાં કુશળ, દશનામે પ્રજાપતિ પોતે જ યજ્ઞ કરવા બેઠા હતા. ત્રિકાળદર્શી ભૃગુ વગેરે ઋષિઓ યજ્ઞ કરાવનાર હતા અને બ્રહ્માદિ દેવસભામાં પ્રેક્ષકો તરીકે બેઠા હતા. આટલા ઉત્તમ સામગ્રી અને સાધન હોવા છતાં પણ યજ્ઞકર્તા દક્ષે ફળની ઈચ્છા કરી હોવાથી, તમે એ યજ્ઞને ફળરહિત કરી દીધો હતો, એ યોગ્ય જ હતું. યજ્ઞાદિ ક્રિયાઓ નિષ્કામપણે ન કરતા તથા તમારા ઉપર શ્રદ્ધા રાખ્યા વિના યજ્ઞ કરીએ, તો એ યજ્ઞકર્તા માટે વિનાશરૂપ ન નિવડે.

પ્રજાનાથં નાથ ! પ્રસભભિમકં સ્વાં દુહિતરં ગતં રોહિદભૂતાં રિરમયિષુમૃષ્યસ્ય વપુષા |
ઘનુષ્પ્રાણેયતિં દિવમપિ સપત્રાકૃતમમું ત્રસતં તેડધાપિ ત્યકાત ન મૃગવ્યાધાદાભસ: || 22 ||

ગુજરાતી અર્થ : પ્રજાનાથ ઈશ્વર ! પોતાના દુહિતા સરસ્વતીનું લાવણ્ય જોઈ, કામવશ થવાથી બ્રહ્મા તેની પાછળ દોડ્યા એટલે સરસ્વતીએ મૃગલીનું રૂપ લીધું. ત્યારે બ્રહ્માએ મૃગશીર્ષ નક્ષત્ર કહેવાય છે તે મૃગનું રૂપ લઈને તેની સાથે ક્રીડા કરવા હઠ લીધી, એવામાં આપે જોયું કે, આ અધર્મ થાય છે, માટે તેને ખચીત દંડ દેવો જોઈએ. તેથી આપે વ્યાઘ નામક આર્દ્રાનક્ષત્ર રૂપી શરને તેની પાછળ મૂક્યું હતું. આજ સુધી પણ તે બાણરૂપી નક્ષત્ર કામી પ્રજાપતિની પૂંઠ મૂકતું નથી.

સ્વલાવણ્યાજ્ઞસાધ્ર તદ્યંનુષમહાય તૃણવત્ પુર: પ્લુષ્ઠં દષ્ટવા પુરમથન ! પુષ્પાયુધમપિ |
યદિ સ્ત્રૈણ દેવી યમનિરત ! દેહાર્ઘઘટના દવૈતિ ત્વામદ્ધા બત વરદ ! મુગ્ધા યુકતય: || 23 ||

ગુજરાતી અર્થ : ત્રિપુરારિ ! દક્ષ કન્યા સતીએ પોતાના પિતાને ત્યાં પોતાનું અને પતિનું અપમાન થવાથી યજ્ઞમાં ઝંપલાવી યજ્ઞ ભ્રષ્ટ કર્યો હતો ત્યાર પછી તે જ પતિને વરવાને બીજે જન્મે પર્વતની પુત્રી પાર્વતી થઈ. તેણે ભિલડીનો વેશ ધારણ કર્યો અને મહાદેવજી તપ કરતા હતા, ત્યાં તેમને મોહ પમાડવાના અનેક પ્રયત્નો કર્યા, પણ તે વ્યર્થ નિવડ્યા. દેવોએ ધાર્યું કે, યજ્ઞ વેળા થયેલા અપમાનથી ક્રોધાયમાન થયેલા મહાદેવજીનો ઉગ્રતાપ હવે આપણાથી સહન થઈ શકશે નહિ. તેથી તે તાપને દૂર કરવાને પાર્વતી સાથે મહાદેવ કામવશ થઈ પરણે, એવા હેતુથી દેવોએ કામદેવને મોકલી આપ્યો હતો. કામદેવના પ્રભાવથી એકેએક બ્રહ્મજ્ઞાની બ્રહ્મમય જગતને નારીમય જોવા લાગ્યા, પરંતુ મહાદેવે તરત ત્રીજું નેત્ર ખોલી પાર્વતીની સાથે કામદેવને ભસ્મ કરી દીધો. આમ છતાં પણ પાર્વતીને માત્ર વિરહ દુ:ખથી ઉગારવાને માટે તમે અર્ઘાંગના પદ આપ્યું હતું. આ તમારું કાર્ય જેઓ મૂઢ છે, તેઓ જ સ્ત્રી આસક્તિવાળું ગણે છે.

સ્મશોષ્વા ક્રીડા સ્મરહર પિશાચા: સહચરા શ્ચિતાભસ્માલેપ: સ્ત્રગપિ નૂકરોટીપરિકર: |
અમંગલ્ય શિલં તવ ભવતુ ન મૈવમખિલં તથાડપિ સ્મર્તૃણાં વરદ ! પરમં મંગલમસિ || 24 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે કામ વિનાશન, સ્મશાન ભૂમિમાં ચારે દિશાઓમાં ક્રીડા કરવી, ભૂત-પ્રેતોની સાથે નાચવું, કૂદવું અને ફરવું, ચિતાની રાખોડી શરીરે ચોળવી અને મનુષ્યની ખોપરીઓની માળા પહેરવી, આવા પ્રકારનું તમારું ચરિત્ર કેવળ મંગલશૂન્ય છે. છતાં તમારું વારંવાર જે સ્મરણ કરે છે, તેને તમારું નામ મંગળમય હોઈ તેને માટે તમારી ભક્તિ મંગળકારી છે.

મન: પ્રત્યક્ ચિત્તે સવિધમવધાય: ત્તમરુત: પ્રહૃષ્યેદ્રોણમાણ: પ્રમદસલિલોત્સં ગિતદશ: |
યદાલોક્યાહલાદં હૃદઈવ નિમજ્જયામૃતમયે દધત્વં તરતત્વં કિમપિ યમિનસ્તત્કિલ ભવાન્ || 25 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે દાતા ! સત્ય-બ્રહ્માને શોધવા માટે અંતમૂઢ થયેલા જે યોગીઓ છે, તેઓ મનને, હૃદયને રોકીને, યોગ-શાસ્ત્રમાં બતાવેલા, યમ, નિયમ, આસન વડે પ્રાણાયામ કરે છે અને બ્રહ્માનંદનો અનુભવ મેળવે છે. એ અનુભવથી તેમના રોમાંચ ઊભા થઈ આનંદથી આંખોમાં હર્ષનાં આંસુ આવી જાય છે. આવા દુર્લભ સ્થળને પ્રાપ્ત થયેલા યોગીઓ, વળી ઈન્દ્રિયોને અગમ્ય, માત્ર અનુભવીએ જાણી શકનારા અવર્ણનીય એવાં તારા તત્વને, અનુભવીને જાણે અમૃતથી ભરેલા સરોવરમાં સ્નાન કરતાં હોય એવો આનંદ મેળવે છે.

ત્વમર્કત્સ્વ સોમત્સ્વમપિ પવનસ્ત્વં હુતવહ સ્ત્વમાપસ્ત્વ વ્યોમ ત્વમુ ધરણિરાત્મા ત્વમિતિચ |
પરિચિછન્નામેવં ત્વયિ પરિજતા બિભ્રતુ ગિરં ન વિદ્મસ્તત્તત્વં વયમહિ તુ યત્વં ન ભવસિ || 26 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે વિશ્વંભર ! તું સૂર્ય છે, તું ચંદ્ર છે, તું પવન છે, તું અગ્નિ છે, તું જ જલ તથા આકાશ રૂપે છે. તું પૃથ્વી છે અને આત્મા પણ તું જ છે. એમ જુદાં જુદાં સ્વરૂપમાં અનુભવી પુરુષો તને ઓળખે છે. પરંતુ હે પ્રભો ! તે બધાંનાં રહસ્યો રૂપે તું આખા બ્રહ્માંડમાં સર્વવ્યાપી સર્વનો કર્તા, ભોક્તા અને નાશકર્તા બની રહેલો છે.

ત્રયી તિસ્ત્રો વૃત્તિસ્ત્રીભુવમથો ત્રીનપિ સુરા નકરાર્વધણૈ સ્ત્રીભિરભિદધત્તીર્ણ વિકૃત્તિ |
તુરીયં તે ધામ ધ્વનિભિરવરુંધાનમયૂભિ: સમસ્ત વ્યક્તં ત્વાં શરણદ ! ગૃણાત્યોમિતિ પદમ || 27 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે અશરણશરણ ! ત્રણ વેદો, ત્રણ અવસ્થાઓ, ત્રિલોક અને અકારાદિ ત્રણ અક્ષરોના ને ભલા ૐકાર પદ એ બધા તમારું જ વર્ણન કરે છે અને તમને અકારથી સ્થૂળ પ્રપંચરૂપી ઉપકારથી સૂક્ષ્મ પ્રપંચરૂપી અને મકારથી સ્થૂલસૂક્ષ્મ પ્રપંચયુક્ત માયારૂપ જણાવે છે. વળી, યોગની ચોથી અવસ્થા વખતે ઉપજતો સૂક્ષ્મતર ધ્વનિ તમને સ્થૂળ અને સૂક્ષ્મ પ્રપંચો તેમજ માયાદિ સર્વ ઉપાધિઓથી રહિતઅખંડ ચૈતન્ય સ્વરૂપાત્મા ૐકાર રૂપ સિદ્ધ કરે છે.

ભવ: શર્વો રુદ્ર: પશુપતિરથોગ્ર: સહ મહાં સ્તથાં ભીમેશાનાવિતિ યદભિનાષ્ટકમિદમ |
અમુષ્મિનપ્રત્યેકં પ્રવિચરતિ દેવો શ્રુતિરપિ પ્રિયા યાસ્મૈ ધામ્ને પ્રણિહિતનમ સ્યોસ્મિ ભવતે || 28 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે દેવ ! તું જગતકર્તા ભક્તો માટે જન્મ લેનાર, સર્વ પશુઓના પાલક રૂપે પશુપતિ, પાપીઓના પાપ વિનાશન રૂપ રુદ્ર, અધર્મીઓને દંડ દેનારો ઉગ્ર, સર્વના સ્વત્વરૂપે સહમહાન વિષપાન, રાવણને દંડ, ત્રિપુરનાશ અને કામદહન જેવાં ભયંકર કર્મોથી ભીમ અને જગતને યથેચ્છ અને યથાર્થ નિયમમાં રાખનાર ‘ઈશાન’ છે. આવી રીતે જેમ શ્રુતિ ‘પ્રણવ’ નો બોધ કરાવે છે. તેમ આ તમારા આઠ નામોનો પણ શ્રુતિ બોધ કરાવે છે. હે દેવ ! પોતાના પ્રકાશકના ચૈતન્યપણાને લીધે સર્વદા અદશ્ય, સર્વને આધારરૂપ કેવળ ચિત્ત વડે જાણી શકાય એવા આપને બીજી કોઈ યથાર્થ રીતે નહિ જાણતો હોવાથી, હું માત્ર વાણી, મન અને શરીર વડે આપને જ નમસ્કાર કરું છું.

નમો નેદિષ્ઠય પ્રિયદવ દવિષ્ઠાય ચ નમો નમ: ક્ષોદિષ્ઠાય સ્મરહર ! મહિષ્ઠાય ચ નમો |
નમોવષિષ્ઠાય ત્રિનયન યવિત્ઠાય ચ નમો: નમ: સર્વસ્મૈ તે તદિદમિતી સર્વાંય ચ નમ: || 29 ||

ગુજરાતી અર્થ : નિર્જન વન વિહારની સ્પૃહા રાખનાર ભક્તોની ખૂબ સમીપ તેમજ અધર્મીઓથી દૂર વસેલા ! હું તમને વંદન કરું છું. હે કામનો નાશ કરનાર અણુથી પણ અણુ તેમજ સર્વથી મહાન તમને હું નમું છું. હે ત્રિનેત્રોને ધારણ કરનાર ! વૃદ્ધ અને યુવાન રૂપે પ્રકટતા તમને મારા નમસ્કાર હો. એક બીજાની અતિ વિરુદ્ધ સ્થિતિમાં રહેનાર હે સર્વરૂપ ભગવન્ તમને હું નમું છું અને તેથી આ તમારું દ્રશ્યરૂપ છે ને પેલું અદશ્યરૂપ છે, એવો ભેદ ન પાડી શકવાથી અભેદરૂપ એક સ્વારૂપાત્મક એવા તમને હું વંદું છું. કારણ કે આખું જગત તમારામય છે.

બહલરજસે વિશ્વોત્પતૌ ભવાય નમોનમ: પ્રબલતમસે તત્સંહારે હરાય નમોનમ: |
જનસુખકૃતે સત્વોદ્વિકતૌ મુંડાય નમોનમ: પ્રમહસિ પદે નિસ્ત્રૈગુણ્યે શિવાય નમોનમ: || 30 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે દીનાનાથ ! બ્રહ્માંડને રચવા માટે તમસ તથા સત્વથી વધારે રજસવૃત્તિને રાખનાર ભવ ! તમને હું નમું છું. આ વિશ્વનો વિનાશ કરવાને સત્વ તથા રજસથી અધિક તમસવૃત્તિને ધારણ કરનાર હું તમને નમું છું. જનોના સુખ માટે તેઓનું પાલન કરવાને રજસ તથા તમસથી અધિક સાત્વિક વૃત્તિને ધરનાર મુંડ તમને નમું છું. આપ ત્રિગુણાત્મક છો અને જ્યોતિરૂપ છો તેથી સત્વ, રજસ અને તમસ – એ ત્રણે ગુણોથી રહિત પ્રકાશમય એવા તારા પદને પામવા માટે એક સ્વરૂપાત્મક શિવ ! એવા તમને હું વારંવાર વંદન કરું છું.

કૃતપરિણતિચેત: કલેશવશ્ય કવ ચેદં કવ ચ તવ ગુણસીમાલ્લંઘિમી શશ્વદદ્ધિ: |
ઈતિ ચકિતમમંદીકૃત્ય માં ભક્તિરોધા દ્વરદ ચરણયોસ્તે વાક્યપુષ્પોપહારમ || 31 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે કલ્પતરુની જેમ કામનાઓને પૂર્ણ કરનાર ! અમારા અલ્પવિષયક, અજ્ઞાન રાગદ્વેષાદિ દોષોથી મલિન ચિત્ત ક્યાં આ અને આપનું ત્રિગુણ રહિત યથાર્થ ગુણગાન પણ ન થઈ શકે એવું શાશ્વત ઐશ્વર્ય ક્યાં ? આ બેની અત્યંત અયોગ્ય તુલના કરતાં હું આશ્ચર્ય પામું છું. મને તમે દયા કરીને તમારી ભક્તિ કરવા પ્રેર્યો છે અને તેથી તમારાં ચરણકમળોમાં અમારી વાક્યો રૂપી પુષ્પોની ભેટ આપવાને હું શક્તિમાન થયો છું.

અસિતગિરિ સમસ્યાત્કજ્જલં સિંધુપાત્રે સુરતરુવરશાખા લેખનીં પત્રમુર્વી |
લિખતિ યદિ ગૃહીત્વા શારદા સર્વકાલં તદપિ તવ ગુણાનામીશ ! પારં ન યાતિ || 32 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે સ્થાવર અને જંગમને નિયમમાં રાખનારા ! સમુદ્રરૂપી પાત્રમાં કાળા પમાક્સમી શાહીથી, કલ્પવૃક્ષની ડાળીને કલમ રૂપે લઈને તથા આખી પૃથ્વીને પત્ર બનાવી, આવા, સર્વોત્તમ સાધન વડે, અનંતવિદ્યાનો પાર પામેલી સરસ્વતી પોતે જો તમારા ગુણોનું વર્ણન જરા પણ થોભ્યા વગર હરહંમેશ લખ્યા કરે, તો પણ તે તેનો અંત પામે તેમ નથી.

અસુરસુરમુનીન્દ્રે રચિતસ્યેન્દુમૌલે ગ્રંથિતગુણમહિમ્નો નિર્ગુણસ્યેશ્વરસ્ય |
સકલગુણવરિષ્ઠ: પુષ્પદંતાભિધાનો રુચિરમલઘુવૃત્તે સ્તોત્રમેતરચ્ચરકા || 33 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે ઈશ્વર ! દેવો, દાનવો અને મોટા મોટા મુનિઓથી પૂજિત, ચન્દ્રને કપાળમાં ધરનાર જેના ગુણોનો મહિમા અહીં વર્ણવ્યો તે તથા સત્વ, રજસ અને તમ, એવા ત્રિગુણોથી રહિત તમારું આ સ્તોત્ર બધા ગુણોથી યુક્ત એવા આચાર્ય શ્રેષ્ઠ પુષ્પદંત નામે એક યક્ષે રચ્યું છે.

અહરહરનવધં ધૂર્જટે ! સ્તોત્રમેત ત્વઠતિ પરમભકત્યા શુદ્ધચિતા પુમાન્યં |
સ ભવતિ શિવલોકે રુદ્રતુલ્યસ્તથાડત્ર પ્રચુરતરધનાયુ પુત્રવાન કીર્તિમાંશ્ય || 34 |
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ગુજરાતી અર્થ : હે જટાધારી ! નિર્મળ મનવાળો જે કોઈ મનુષ્ય દરરોજ પરમ ભક્તિથી આ ઉત્તમ સ્તોત્રોનો પાઠ કરે છે, તે શિવ સ્તુતિના પુણ્ય મેળવે છે. અંતે શિવલોકમાં રુદ્રના પદને પામે છે. તથા આ મહીલોકમાં મોટો ધનાઢ્ય, દીર્ધ આયુષ્યવાળો, પુત્રવાળો અને કીર્તિને વરનારો થાય છે.

મહેશાન્નાપરો દેવો મહિમ્નો નાપરા સ્તુતિ: |
અઘોરાન્નાપરો મંત્રો નાસ્તિ તત્વં ગૂરો: પરમ || 35 ||

ગુજરાતી અર્થ : ખરેખર ! મહેશના જેવા બીજા કોઈ શ્રેષ્ઠ દેવ નથી. આ ‘મહિમ્નસ્તોત્ર’ જેવી બીજી કોઈ સ્તુતિ નથી, ‘અઘોર’ નામના મંત્રથી બીજો કોઈ મહાન મંત્ર નથી અને ગુરુ પરંપરા વિનાનું અન્ય કાંઈ શ્રેષ્ઠ નથી. આથી ગુરુ પરંપરા હે ઈશ્વર ! તને હું સ્તોત્ર દ્વારા નમસ્કાર કરું છું.

દીક્ષા દાનં તપસ્તીર્થ જ્ઞાનં યાગાદિકા: ક્રિયા: |
મહિમ્નસ્તવ પાઠસ્ય કલાંનાર્હન્તિ ષોડશીમ્ || 36 ||

ગુજરાતી અર્થ : દીક્ષા, દાન, તપ, તીર્થ, જ્ઞાન અને યજ્ઞાદિ ક્રિયાઓ જે લોકો સકામપણે કરે તેના કરતાં પણ તમારા મહિમાના આ પાઠથી જે સોળમી કળા, તે વધી જાય છે. માટે તમારી આ સ્તોત્રથી ભક્તિ કરવી એ જ ઉત્તમ છે.

કુસુમદશનનામા સર્વગંધર્વરાજ: શિશુશશિધરા મૌલેદેવેદસ્ય દાસ |
સ ખલુ ર્નિજમહિમ્નો ભ્રષ્ટ એવાસ્ય રોષા ત્સ્તવનામિદકાર્ષી દિવ્ય દિવ્યં મહિમ્ન: || 37 ||

ગુજરાતી અર્થ : કોઈ રાજાના બગીચામાંથી પુષ્પદંત વિમાનમાંથી અદશ્ય રહી પુષ્પ ચોરતા હતા, તેથી રાજાએ બિલ્વપત્ર કે તુલસીદલ તેમના માર્ગમાં વેર્યાં. એમ કરવાનો ઉદ્દેશ એ હતો કે શિવ કે, વિષ્ણુનો ભક્ત નિર્માલ્ય ઓળંગી જઈ શકશે નહિ. ગંધર્વરાજ પુષ્પદંતે એ નિર્માલ્ય ઓળંગવાથી મહાદેવ કોપાયમાન થયા અને પુષ્પદંતની અદશ્ય રહેવાની શક્તિ નાશ પામી. આથી શિવજીને પ્રસન્ન કરવાને સર્વ ગંધવો રાજા અને બાલેન્દુને કપાળ વિષે ધરાવનાર શંકરના દાસ કુસુમદર્શને પુષ્પદંતે આ અતિ દિવ્ય સ્તોત્ર રચ્યું છે.

સુરવરમુનિપૂજ્યં સ્વર્ગમોક્ષેક હેતુ પઠતિ યદિ મનુષ્ય: પ્રાંજર્લિર્નાંન્યચેતા:
વજતિ શિવસમીપં કિન્નરે: સ્તુયમાન: સ્તવનમિદમતીઘં પુષ્પદંત પ્રણીતમ્ || 38 ||

ગુજરાતી અર્થ : આ શ્લોકમાં આ સ્તોત્રનો મહિમા વર્ણવ્યો છે. ઈન્દ્ર અને મુનિઓથી પૂજાયેલું સ્વર્ગ મોક્ષપ્રાપ્તિના એક જ સાધન સમું, હંમેશ ફલદાયક અને શ્રીપુષ્પદંતે રચેલું આ સ્તોત્ર જે કોઈ મનુષ્ય બે હાથ જોડી નમ્રભાવે તથા એકાત્મ થઈને ભક્તિથી સ્તવે છે, તે કિન્નરોથી સ્તુતિ પામતો શિવની પાસે જાય છે.

આસમાપ્તિમિદં સ્તોત્ર પુણ્યં ગંધર્વભાષિતમ |
અનૌપમ્યં મનોહારિ શિવમીશ્વરર્ણન || 39 ||

ગુજરાતી અર્થ : આ સમાપ્તિ સુધીનું સ્તોત્ર ઉપમા આપી શકાય નહિ તેવું છે. તે (સુગંધિત વાયુની જેમ મનને પ્રફુલ્લિત કરે છે તેમ આત્માને પ્રફુલ્લિત કરે છે.) મનોહર, મંગલમય ઈશ્વરના વર્ણનરૂપ હોઈ, તે પુષ્પદંત નામે યક્ષે રચ્યું છે.

ઈત્યેષા વાંડમયી પૂજા શ્રીમચ્છંકરપાદયો: |
અર્પિતા તેન દેવેશ: પ્રીયતાં મે સદાશિવ: || 40 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે દેવના દેવ ! મારી વાણી રૂપી આ પૂજા તમારાં ચરણકમળમાં અર્પણ કરી છે, તો આપ સર્વદા પ્રસન્ન થજો.

તવ તત્વં ન જાનામિ કોદ્દ્શોડસિ મહેશ્વર: |
યાદશોડશિ મહાદેવ ! તાદશાય નમોનમ: || 41 ||

ગુજરાતી અર્થ : હે મહેશ્વર ! હે મહાદેવ ! હું તો અજ્ઞાની છું. આપનું તત્વ કયું અને આપ કેવા હોઈ શકો તેની મને ખબર નથી. પણ જેવી રીતે પોતાની કર્તવ્ય પરાયણતાને ન સમજનાર માનવ સ્નેહવશ થઈને વડિલને નમે છે, તેવા ભાવથી હું આપને પુન: પુન: નમું છું.

એકકાલં દ્વિકાલં વા ત્રિકાલં ય પઠેન્નર: |
સર્વપાપવિનિર્મુક્ત શિવલોકે મહીયતે || 42 ||

ગુજરાતી અર્થ : જે મનુષ્ય દિવસમાં એકવાર, બેવાર, કે ત્રણવાર આ સ્તોત્રનો પાઠ કરે છે, તે બધાં ય પાપોથી છુટીને શિવલોક વિષે પૂજાને પાત્ર થાય છે.

શ્રી પુષ્પદંત મુખ પંકજનિર્ગતેન સ્તોત્રેણ કિલ્વિષહરેણ હરિપ્રિયેણ |
કંઠસ્થિતેન પઠિતેન સ્માનહિતેન સપ્રીણિતા ભવતિ ભૂતગતિર્મહેશ || 43 ||

ગુજરાતી અર્થ : જે કોઈ શ્રી પુષ્પદંતના મુખકમળમાંથી નીકળેલું સર્વપાપોને નાશ કરનારું, શિવજીને અતિપ્રિય એવું આ સ્તોત્ર મોઢે કરે છે અને તેનો ધ્યાનપૂર્વક પાઠ કરે છે તેના પર અખિલ બ્રહ્માંડના પાલકપિતા શ્રી મહેશ પ્રસન્ન થાય છે.

||ઈતિ શ્રી શિવ મહિમ્ન સ્તોત્ર (Shiv Mahimna Stotram) સમાપ્ત.

शिव लिंगाष्टकम स्तोत्रम् | Shiv Lingashtakam Stotram lyrics

Shiv Mahimna Stotram with Meaning | शिव महिम्न स्तोत्र

Shiv Mahimna Stotram was composed by a Gandharva named Pushpadanta. This is a powerful hymn describing the greatness of Devon Ke Dev mahadeva, who is the destroyer of the Worlds. The legend has some basis since the name of the author is mentioned in verse number 43 of the stotram.

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शिव महिम्न स्तोत्र के लाभ – Benefits of Shiv Mahimna Stotram

  • जो कोई भी शिव महिम्न स्तोत्र (Shiv Mahimna Stotram) का नित्य पाठ करता है वह शिव की पूजा में आनंदित होता है।
  • शिव महिम्न स्तोत्र (Shiv Mahimna Stotram) का नित्य पाठ डर पर काबू पाने,आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति हासिल करने में मदद करता है।
  • जो कोई भी इस शिव महिम्न स्तोत्र (Shiv Mahimna Stotram) का पाठ करता है उसे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
  • जो कोई भी इस Shiv Mahimna Stotram का पाठ करता है उसे जीवन में शांति मिलती हे
  • शिव महिम्नः स्तोत्र (Shiv Mahimna Stotram) भगवान शिव के भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है और भगवान शिव को अर्पित किए जाने वाले सभी स्तोत्रों में सबसे लोकप्रिय माना जाता है।
  • जो कोई भी इस शिव महिम्न स्तोत्र (Shiv Mahimna Stotram) का पाठ करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • भगवान शिव को अक्सर सुरक्षा और नकारात्मक शक्तियों के विनाश से जोड़ा जाता है। भक्त शिव महिम्न स्तोत्रम् का पाठ करके, भक्त नकारात्मक प्रभावों को दूर कर शांति का अनुभव करते हैं।

शिव महिम्न स्तोत्र का महत्व – Importance of Shiv Mahimna Stotram

  • शिव महिम्न स्तोत्रम् का पाठ करके भक्त भगवान शिव के साथ अपने संबंध को मजबूत कर सकते हैं।
  • Shiv Mahimna Stotram का शुद्ध मन से नित्य पाठ करता है। भगवान् शिव उनकी रक्षा करते हे
  • शिव महिम्न स्तोत्रम् को एक पवित्र मंत्र माना जाता है जो मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करता है।
  • Shiv Mahimna Stotram का पाठ मानसिक अशांति, तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है
  • शिव महिम्न स्तोत्रम् का पाठ करने वाले किसी भी व्यक्ति पर हर समय भगवान् भोलेनाथ की कृपा बरसती है और उसे जीवन का कोई भी भय या रोग नहीं सताता है

शिव महिम्न स्तोत्रम् का पाठ कब करे?

शिव महिम्न स्तोत्रम् का पाठ करने का सबसे शुभ समय सोमवार, शिवरात्रि अथवा श्रावण मास में प्रतिदिन को माना जाता है । हालांकि, इस स्तोत्र का पाठ आप किसी भी समय और किसी भी दिन कर सकते हैं। क्योकि यह स्त्रोत का प्रतिदिन पाठ करने से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती हे और नकारात्मक ऊर्जा कम होती हे

  • सोमवार: सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है इसीलिए आप हर सोमवार को शिव महिम्न स्तोत्रम् का पाठ कर सकते हैं।
  • श्रावण मास: हिन्दू कैलेंडर के श्रावण मास में प्रतिदिन Shiv Mahimna Stotram का नियमित पाठ करने से पुण्य प्राप्त होता है।और मोक्ष की प्राप्ति होती हे
  • ब्रह्म मुहूर्त: सुबह के ब्रह्म मुहूर्त में शिव महिम्न स्तोत्रम् का पाठ करने का विशेष महत्व होता है।

FAQs For Shiv Mahimna Stotram

शिव महिम्न स्तोत्रम्( Shiv Mahimna Stotram) क्या है?

Shiv Mahimna Stotram में भगवान् शिव के दिव्य स्वरूप एवं उनकी सादगी का वर्णन है।

शिव महिम्न स्तोत्र (Shiv Mahimna Stotram) किसने लिखा हैं ?

पुष्पदंत द्वारा रचित शिव महिम्न स्तोत्र शिव जी को अत्यंत ही प्रिय है

शिव महिम्न स्तोत्र में कितने श्लोक हैं ?

Shiv Mahimna Stotram में 43 श्लाेक हैं

शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने के क्या लाभ होता हैं ?

Shiv Mahimna Stotram आपके अंदर के डर को खत्म करता है। यह स्तोत्र शिव के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति बताता है

निष्कर्ष 

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