सनकादि मुनियों का श्राप – Sanat Kumara | श्री सनकादि मुनि कौन हैं

सनकादि मुनियों का श्राप

श्री सनकादि मुनि कौन हैं ? सनकादि ऋषि (सनकादि = सनक + आदि) से तात्पर्य ब्रह्मा के चार पुत्रों सनक, सनन्दन, सनातन व सनत्कुमार से है। भागवत पुराण में कथा भगवान की इच्छा थी लीला करने की इसलिए ब्रह्मा जी की पहली संतान को माध्यम बनाया उनका नाम है मुनियों का नाम है सनक सनंदन सनातन सनत कुमार

नामसनक, सनन्दन, सनातन व सनत्कुमार
सनकादि मुनि कौन हैं ?ब्रह्मा के मानस पुत्र
निवासस्थानब्रह्मलोक
पिताब्रह्मा
भाईनारद मुनि, दक्ष प्रजापति

हिरण्याक्ष-हिरण्यकश्यपु रावण-कुम्भकर्ण शिशुपाल-दन्तवक्र कौन थे ? सनकादि मुनियों का श्राप (सनक-सनंदन-सनातन और सनतकुमार)

दोस्तों यह कहानी हिरण्याक्ष-हिरण्यकश्यपु रावण-कुम्भकर्ण शिशुपाल-दन्तवक्र के बारेमे हे|भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारपाल थे जय और विजय एक दिन चारों सनकादि कुमार भगवान विष्णु के दर्शन के लिए वैकुण्ठ जा पहुंचे। विष्णुलोक का सौंदर्य देखकर चारो सनकादिक मुनि बड़े ही प्रसन्न हुए।

चारो कुमार द्वार की और आगे बढ़े लेकिन जय और विजय ने सनकादिक मुनियों को आगे बढ़ने से रोक दिया। 

भगवान विष्णु के द्वारपाल जय विजय को श्राप 

यह देखकर सदा शांत रहने वाले सनकादि मुनियों को क्रोध आ गया।उन्होंने द्वारपालों को बताया की बड़ा आश्चर्य है।वैकुण्ठ लोक के निवासी होकर भी तुम्हारा विषम स्वभाव समाप्त नहीं हुआ?ये बड़े ही आश्चर्य की बात हे तुम लोग यहाँ रहने के योग्य नहीं हो अतः तुम नीचे मृत्युलोक में चले जाओ।

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तुम्हारा पतन हो जायेगा।जय और विजय द्वारपाल मुनियों के चरणों पर गिर पड़े।तभी भगवान विष्णु का वहां पर आगमन हुआ।मुनियों नें भगवान को प्रणाम किया।भगवान विष्णु कहते हैं” मैं आपसे जय विजय द्वारा अनुचित व्यवहार हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ।” 

क्यों मिला था भगवान् विष्णु के द्वारपालों को श्राप 

भगवान् विष्णु ने जय विजय से कहा”मैं इस श्राप को समाप्त कर सकता हूँ परंतु मैं ऐसा नहीं करुंगा क्योंकि तुम लोगों को ये श्राप मेरी इच्छा से ही प्राप्त हुआ है। 
भगवान् विष्णु की बात मानकर जय और विजय ने श्राप को ग्रहण किया।

जय विजय ने प्रभु से निवेदन किया हे प्रभु तीनो जन्मो में हमारा उद्धार आपसे ही हो ऐसी हमारी इच्छा हे प्रभु ने तथास्तु कहा और अंतध्यान हो गए इसी श्राप के कारण ये दोनों द्वारपाल तीन जन्मों तक राक्षस बने।

जय विजय के जन्म

पहले जन्म में जय और विजय हिरण्याक्ष-हिरण्यकश्यपु बने जिनका उद्धार भगवन विष्णु ने किया दूसरे जन्म में जन्म में जय और विजय रावण-कुम्भकर्ण बने जिनका उद्धार भगवान् विष्णु के अवतार भगवान् श्रीराम ने उद्धार किया तीसरे जन्म में  जन्म में जय और विजय शिशुपाल-दन्तवक्र बने जिनका उद्धार भगवान् विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने उद्धार किया 

निष्कर्ष
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