दोस्तों क्या आप वराह अवतार Lord Vishnu Varah avtar katha से जुड़ी कथा के बारेमे जानना चाहते हे ? क्या आप भगवान विष्णु के अवतार भगवान वराह के बारेमे जानना चाहते हे? तो आपसे अनुरोध है की कुछ समय दे कर पुरे लेख को अच्छी तरह से पढ़े ताकि आपको पूरी जानकारी मिल सके।
1 | Lord Vishnu Matsya avtar Story | भगवान विष्णु का प्रथम अवतार | मत्स्य अवतार |
2 | Lord Vishnu Kurma avatar Story | भगवान विष्णु का द्वितीय अवतार | कूर्म अवतार |
3 | Lord Vishnu Varah avatar katha | भगवान विष्णु का तृतीय अवतार | वराह अवतार |
4 | Lord Vishnu Narasimha avatar Story | भगवान विष्णु का चौथा अवतार | नरसिंह अवतार |
5 | Lord Vishnu Vaman Avtar Story | भगवान विष्णु का पाँचवाँ अवतार | वामन अवतार |
6 | Lord Vishnu Parshuram avtar Story | भगवान विष्णु का छठा अवतार | परशुराम अवतार |
7 | Lord Vishnu Shree Ram avtar Story | भगवान विष्णु का सातवाँ अवतार | श्रीराम अवतार |
8 | Lord Vishnu Shree Krishna avatar Story | भगवान विष्णु का आठवाँ अवतार | श्री कृष्ण अवतार |
9 | Lord Vishnu Budhdha avatar Story | भगवान विष्णु का नोवाँ अवतार | बुद्ध अवतार |
वराह अवतार – Dasavataras of Vishnu – Lord Vishnu Varah avtar katha
वराह अवतार भगवान विष्णु का तीसरा अवतार माना जाता हे | वराह अवतार में भगवान विष्णु ने पृथ्वी को हिरण्याक्ष से बचा कर रसातल से वापस लये थे |वराह अवतार भगवान् विष्णु /नारायण के २४ चौबीस अवतारों में से तीसरा अवतार है
पुराणोंके अनुसार भगवान विष्णु के द्वार पाल जय और विजय थे| एक दिन भगवान विष्णु के दर्शन के लिए ब्रह्मा जी के मानस पुत्र सनकादित ऋषि आये लेकिन जय और विजय ने उनको अंदर जाने से रोका | यह देख कर चारो ऋषि क्रोधित हो गए ओर उन्हों ने जय और विजय को वैकुण्ठ से निकल कर पाप योनियोमे जाने को कहा|यह सुनकर दोनों सनकादित ऋषि के चरणों मे गिर गये और माफ़ी मांगने लगे | इसे देखकर भगवान विष्णु वह पे आते हे | जय और विजय दोनो भगवान विष्णु से पार्थना करने लगे | भगवान विष्णु ने दोनों से कहा की तुम दोनों ने बहुत बड़ा अपराध किया हे तुम इसकी सजा जरूर मिलनी चाहिए | यह कहकर भगवान विष्णु सनकादित ऋषिओ से शर्मा मांगते हे |
भगवान विष्णु के वराह अवतार की कथा – Nasadiya Sukta and Varahavatara
भगवान विष्णु के शर्मा मांगने पर सनकादित ऋषिओ ने कहा कि “हमने क्रोध में आकर दोनो को शाप दिया हमें शर्मा करे लक्ष्मीपति” तब भगवान विष्णु ने कहा “आपका शर्मा मेरी इच्छा से मिल हे |ये दोनों राक्षस योनि में जन्म लेंगे और उनको मुक्ति मेरे हाथों सेही मिलेगी | यह सुनकर जय और विजय के साथ सनकादित ऋषिओ ने भगवान विष्णु को प्रणाम किया और वहासे चले गए |
हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष
सनकादित ऋषि ओ के शर्मा के कारण जय और विजय दोनों कश्यप मुनी और दिति के पुत्र के तोरपर जन्म लिया | उनके दोनों पुत्र का नाम हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष रखा गया|दोनों भाई एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे| दोनों एक दूसरे के लिए प्राण त्याग ने के लिए तैयार थे | और दोनों बहुत शक्तिशाली योद्धा थे |उन्होंने देवता को हराकर स्वर्ग पे कब्ज़ा करलिया था | उसके साथ साथ हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को रसातल में छुपा दिया | यह देखकर सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा बहुत दुखी हुए और उन्होंने भगवान विष्णु का ध्यान किया |जब ब्रह्मा जी ध्यान कर थे तब उनकी नाक से वराह शिशु की उत्पति हुयी और वो शिशु देखते ही देखते विशाल आकर में परिवर्तित होगा |वराह भगवान की गूंज चारों ओर सुनाई देने लगी |
हिरण्याक्ष का वध
वराह अवतार लेने के कारण उनकी नाक से पृथ्वी को सुंग कर पता लगा रहे थे | पृथ्वी को धुनते धुनते रसातल में चले गए वह उन्होंने पृथ्वी को देखा और उनके दोतो से उठा कर भगवान वराह ने रसातलसे बहार लाये थे| लेकिन जब पृथ्वी को उसके स्थान पर रखने जा रहे थे तब वह हिरण्याक्ष पहुंच जाता हे और भगवान वराह और हिरण्याक्ष के बीच भयंकर संग्राम हुआ और हिरण्याक्ष का वध हो जाता हे | उसके बाद भगवान वराह पृथ्वी को उसके स्थान पर रख देते हे|
भगवान विष्णु से प्रेम करना भी अच्छा है, बैर करना भी अच्छा है। जो प्रेम करता है, वह भी विष्णुलोक में जाता है, और जो बैर करता है, वह उनसे दण्ड पाकर विष्णुलोक में जाता है। प्रेम और बैर भगवान की दृष्टि में दोनों बराबर हैं। इसीलिए तो कहा जाता है कि भगवान सब प्रकार के भेदों से परे है
भगवान विष्णु के दशावतार की कहानी यहाँ पर मिलेगी
निष्कर्ष
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