महादेव का 18 अवतार : ब्रह्मचारी | Lord Shiva Brahmchari Avatar

Lord Shiva Brahmchari Avatar - ब्रह्मचारी अवतार

दोस्तों क्या आप महादेव का 18 अवतार : ब्रह्मचारी अवतार के बारेमे जानना चाहते हे ? क्या आप भगवन शिव के अवतार के बारेमे जानना चाहते हे? तो आप सही आर्टिकल पढ़ रहे हो । आपसे अनुरोध है की कुछ समय दे कर पुरे लेख को अच्छी तरह से पढ़े ताकि आपको पूरी जानकारी मिल सके।

1Veerabhadra Avatar of Lord Shivaवीरभद्र: महादेव का प्रथम अवतार
2Piplaad Avatar of Lord Shivaपिप्पलाद: महादेव का द्वितीय अवतार
3Nandi Avatar of Lord Shivaनंदी: महादेव का तृतीय अवतार
4Bhairava Avatar of Lord Shivaभैरव: महादेव का चौथा अवतार
5Ashwatthama Avatar of Lord Shivaअश्वत्थामा: महादेव का पाँचवाँ अवतार
6Sharabha Avatar of Lord Shivaशरभावतार: महादेव का छठा अवतार
7Grihapati avatar of Lord Shivaगृहपति: महादेव का सातवाँ अवतार
8Durvasa avatar of Lord Shivaऋषि दुर्वासा: महादेव का आठवाँ अवतार
9Hanuman Avatar of Lord Shivaहनुमान: महादेव का नोवाँ अवतार
10Rishabha Avatar of Lord Shivaवृषभ: महादेव का दसवाँ अवतार
11Yatinath Avatar of Lord Shivaयतिनाथ: महादेव का ग्यारहवाँ अवतार
12Krishna Darshan Avatar of Lord Shivaकृष्णदर्शन: महादेव का बारहवाँ अवतार
13Avadhut Avatar of Lord Shivaअवधूत: महादेव का तेरहवाँ अवतार
14Bhikshuvarya Avatar of Lord Shivaभिक्षुवर्य: महादेव का चौदहवाँ अवतार
15Sureshwar Avatar of Lord Shivaसुरेश्वर: महादेव का पंद्रहवाँ अवतार
16Keerat Avatar of Lord Shivaकिरात: महादेव का सोलहवाँ अवतार
17Brahmachari avatar of Lord Shivaब्रह्मचारी: महादेव का सत्रहवाँ अवतार
18Sunatnartak avatar of Lord Shivaसुनटनर्तक: महादेव का अठारहवाँ अवतार
19Yaksheshwar Avatar of Lord Shivaयक्ष: महादेव का उन्नीसवाँ अवतार

महादेव का अठारहवाँ ब्रह्मचारी अवतार – Brahmchari Avatar Of Lord Shiva

महादेव का यह १८ वा अवतार था जो उन्होंने माता पार्वती की परीक्षा लेनेके लिए लिया था | भगवान शिवजी की पत्नी माता सती जोकि हिमाचल पुत्री माता पार्वती के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे | माता सती ने हवन कुंड में प्राण त्यागने के बाद यह उनका पुनः जन्म था | माता पार्वती के इस जन्म मेंभी वे भगवान शिवजी को पाने की चाह थी | जिस वजह से उन्होंने महादेव की घोर तपस्या की थी | 

ब्रह्मचारी अवतार कथा :

यह कथा माता सती की मृत्यु और उन्ही के पुनः जन्म से जुडी हुए हे | माता सती प्रजापति दक्ष की पुत्री थी | प्रजापति दक्ष उन्हें अपने प्राण से भी अधिक चाहते थे | एक बार प्रजापति दक्ष के सत्कार्य को देख महर्षि दुर्वाशा ने उन्हें कभी न मुर्जा ने वाली पुष्प माला दी | प्रजापति दक्षने वह माला अपनी प्रिय पुत्री सती को दे दी | महर्षि दुर्वाशा ने यह देखा तो उनको क्रोध आया और प्रजापति दक्षको श्राप दे दिया की जिस पुत्री कोवे इतना प्रेम करते हे एक दिन उसी पुत्री से धिक्कार करेंगे | प्रजापति दक्ष का यह श्राप सत्य हुआ और  प्रजापति दक्षने महा यज्ञ में माता सती को नहीं बुलाया अतः माता सती के जाने पर उन्हें अपमानित किया | माता सती उनका अपमान नहीं सह सकी और यज्ञ के हवन हूंद की ज्वाला में अपने प्राण त्याग दिए | 

माता पार्वती की कठोर तपस्या

कुछ समय पश्च्यात प्रजापति दक्षने अपना पुनः जन्म हिमाचल के रूप में लिया और उनकी पत्नी प्रसूति ने मैना के रूप में जन्म लिया अतः उनकी पुत्री सती ने इस जन्म में भी उनकी पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया | पार्वती बालयकाल से ही भगवान शिव की भक्ति करने लगी और उन्ही को पाने के लिए तपस्या करने लगी | माता पार्वती ने बचपन से भगवान शिवजी की तपस्या करना शुरू कर दीया था | कई सालो तक माता पार्वती ने महादेव की तपस्या की | भगवान शिव अपने प्रति श्रध्धा को देख उनके अनुराग की परीक्षा लेने का निर्णय लिया | 

भगवान शिव ने ली माता पार्वती की परीक्षा

एक बार माता पार्वती नदी के किनारे भगवान शिव जी की तपस्या कर रही थी | यह देख महादेव ने ब्रह्मचारी का रूप धारण किया और माता पार्वती के पास गए | माता पार्वती को तपस्या करते देख  ब्रह्मचारी ने उनसे उनकी तपस्या का कारण पूछा |माता पार्वति ने कारण बताते हुए कहा वे महादेव को पाने की इच्छा से उनकी तपस्या कर रही हे | यह सुन  ब्रह्मचारीने भगवान शिवजी की निंदा करते हुए कहा शिव औघड़,अमंगल वेषधारी और जटाधारी हैं और वे तुम्हारे लिये उपयुक्त वर नहीं हैं। उनके साथ विवाह करके तुम्हें सुख की प्राप्ति नहीं होगी। तुम उनका ध्यान छोड़ दो। तथा उन्हें श्मशानवासी व कापालिक भी कहा। परन्तु पार्वती अपने विचारों में दृढ़ रहीं। महदेव के बारे में ऐसी बाते सुन वे बहुत क्रोधित हो गए | 

पार्वती की भक्ति व प्रेम को देखकर महादेव ने उन्हें अपने वास्तवि रूप के दर्शन दिए और माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वचन दिया | 

निष्कर्ष
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