बुद्ध पूर्णिमा – Budhha Purnima 2023 | क्यों मनाई जाती है बुद्ध पूर्णिमा ?

बुद्ध पूर्णिमा

क्या दोस्तों आप जानना चाहते हे कि क्यों मनाई जाती है बुद्ध पूर्णिमा ? तो आप सही आर्टिकल पढ़ रहे हो | आपसे अनुरोध है की कुछ समय दे कर पुरे लेख को अच्छी तरह से पढ़े ताकि आपको पूरी जानकारी मिल सके। भगवान बुद्ध का जन्म वैशाख मास की पूर्णिमा को हुआ था इसलिए इस पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है. भारत में इस दिन बड़े हर्षोल्लास के साथ पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता हे

बुद्ध पूर्णिमा तिथि और शुभ मुहूर्त

वैशाख पूर्णिमा 2023 डेट05 मई 2023, शुक्रवार
बुद्ध पूर्णिमा 2023 तिथि प्रारम्भ: 04 मई 2023, गुरुवार 11:44 pm
बुद्ध पूर्णिमा 2023 तिथि समापन05 मई 2023, शुक्रवार 11:00 pm

Buddha Purnima 2023 – बुद्ध पूर्णिमा 

बुद्ध पूर्णिमा कैसे मनाई जाती है? 2023 का पूर्णिमा कब है? बुद्ध पूर्णिमा इस साल 5 मई शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन कई देशों में इसे बुद्ध जन्मोत्सव के तौर पर मनाया जाता है।

बुद्ध पूर्णिमा को वैशाख पूर्णिमा या वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है | बुद्ध पूर्णिमा ना केवल बौद्ध धर्म के लिए नहीं परं तू हिन्दू धर्म में भी मनाया जाता है | क्यो की हिन्दू धर्म में बुद्ध को भगवान विष्णु के नौवें में अवतार के रूप में पूजा जाता है | इसलिए ना केवल बौद्ध धर्म में बल्कि हिन्दू  धर्म में भी बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है |

गौतम बुद्ध की जीवनी – गौतम बुद्ध की व्यक्तिगत जानकारी

नाम :सिद्धार्थ / गौतम बुद्ध
जन्म तिथि :563 ईसा पूर्व
निर्वाण तिथि :ईसा पूर्व 483 कुशीनगर, भारत (आयु 80 वर्ष)
जन्मस्थल :लुम्बिनी – नेपाल
माता :मायादेवी
पिता :शुद्धोधन
जीवनसाथी :राजकुमारी यशोधरा
पुत्र :राहुल
source Wikipedia

बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाते है ?

बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध जन्म हुआ था और भगवान बुद्ध को इसी दिन बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी | माना जाता हैकि उनको इसी दिन निर्वाण(मोक्ष) की भी प्राप्ति हुई थी | आज 50 करोड़ से भी जादलोग बौद्ध धर्म में मानते है और बुद्ध पूर्णिमा को बरेही धूम धाम से मनाते है | बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म के सभी भक्त बिहार में स्थित बोधगया नाम के स्थान पे दर्शन के लिए जाते है | बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यहाँ दिन तोहार की तरह मनाते है। इस दिन अलग-अलग देशों में वहां के रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार मनाया जाता है।

बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध धर्म के लोग बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का पुरे दिन पाठ करते है | और हिन्दू धर्म के लोग यहाँ दिन को वैशाख पूर्णिमा के तौर पर मनाते है | और बोधि वृक्ष की पूजा की जाती है | 

बुद्ध पूर्णिमा के दिन हिन्दू धर्म के सभी भक्त सुबह जल्दी उठकर घर की सफाई करते हैं | नहाने के बाद गंगा जल का छंटकाव करते हैं | भगवान विष्णु के मंदिर में या अपने अपने घर में दीपक जलाकर और घर  मंदिर को फूलों से सजाते है | बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है |

गौतम बुद्ध की मोक्ष प्राप्ति 

भगवान बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना करते समय 4 मुख्य संदेश दिए थे | भगवान बुद्ध ने कहा हे की मनुष्य इस पूरी दुनिया में केवल दुःख ही दुःख है | हमारे बुढ़पे में हम जब बीमार होतेे है तब |जब हमारी मृत्यु होती है तब | और ऐसे ही सभी जगह पर हमें दुःख ही दुःख मिलता है | लेकिन मनुष्य के सभी दुखों कारण तृष्णा और उनकी इच्छा है | लेकिन जब मनुष्य की तृष्णा और उनकी इच्छाओं का अंत होगा तब मनुष्य के जीवन से सभी दुःख समाप्त हो जायेंगे |

बुद्ध पूर्णिमा पर 5 बातें जानना जरूरी है

बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बुद्ध पूर्णिमा सबसे बड़ा त्योहार का दिन होता है। इस दिन अनेक प्रकार के समारोह आयोजित किए गए हैं। अलग-अलग देशों में वहां के रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार समारोह आयोजित होते हैं। बुद्ध पूर्णिमा पर ये 5 बातें जानना जरूरी है

श्रीलंकाई इस दिन को ‘वेसाक‘ उत्सव के रूप में मनाते हैं

बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है

 दुनिया में कई जगह पर बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएं करते हैं

 बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का नित्य पाठ किया जाता है

मंदिरों तथा घरों में धूपबत्ती लगाई जाती है। मूर्ति पर फलफूल आदि चढ़ाए जाते हैं

दीपक जलाकर पूजा की जाती है।

महात्मा बुद्ध उपदेश

गौतम बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश किया। उन्होंने दुःख और उसके कारण का मार्ग सुझाया। बुद्ध ने अहिंसा पर बहुत जोर दिया है। बुद्ध ने कहा कि इस दुनिया में दुख ही दुख है (सुख ही दुःख का आधार हे )

बुद्ध के चार आर्य सत्य:

प्रथम आर्य-सत्य के अनुसार संसार दुःखमय है

  • सुख का न मिलना दुःख है
    • प्राप्ति का दुःख – सुख को प्राप्त करने के प्रयास में दुःख है
    • संभालने का दुःख – प्राप्त होने के बाद उसको संभालने का दुःख
    • खोने का दुःख – प्राप्त सुख का भी कभी-न-कभी अंत होगा इसलिए खोने का दुःख

इस संसार में जन्म से लेकर मृत्यु तक सारा जीवन ही दुःखमय है | मृत्यु के बाद भी दुःख का अंत नही होता क्योकि उसके बाद पुनर्जन्म है और फिर मृत्यु है। इसी प्रकार यह जन्म-मृत्यु-चक्र निरन्तर चलता रहता है और प्रत्येक व्यक्ति इसमे फँसकर दुःख को भोगता रहता है तब आनंद मानाने का अवसर कहाँ है ?

महात्मा बुद्ध ने दुःखों की बात उजागर की लेकिन वो यही पर नही रुके बल्कि बुद्ध ने दुःखों को दूर करने के उपाए भी बताये है।

महात्मा बुद्ध ने दुःख-निरोध को ही मोक्ष (निर्वाण)कहा है ।दुःख-निरोध ऐसी अवस्था है जिसमे दुःखों का अंत होता है | निर्वाण का अर्थ जीवन का अन्त नही है जैसे ही आप दुखो को जान जाओगे आपका जीवन सरल हो जायेगा | मोक्ष (निर्वाण) की प्राप्ति इस जीवन में भी सम्भव है। गौतम बुद्ध के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को अपना निर्वाण स्वयं ही प्राप्त करना है । यह मनुष्य का शरीर उसके पूर्वजन्म के कर्मो का फल होता है, जब तक ये कर्म समाप्त नही होते तब तक शरीर भी समाप्त नही होता है इसलिए बुद्ध ने कहा यह संसार दुःख है, और समस्त दुखों का मूल कारण अज्ञान है 

बुद्ध कहते हैं कि स्वास्थ्य पाना है तो बीमारियों के कारण ढूंढों और उन्हें हटाओ तभी स्वास्थ्य घटेगा। बुद्ध की देशना में सबसे बड़ी बात है कि उन्होंने कोई सीधे कारण नहीं बताये, इशारे किये और महत्वपूर्ण बात कही- ‘अप्प दीपोभाव’ अपने दीये स्वयं बनो।

दुःख से छुटकारा पाने के लिए बुद्ध ने उपेक्षा (गीता के अनुसार स्थितप्रज्ञ) एक कारगर उपाय बताया है। उपेक्षा (स्थितप्रज्ञ) का अर्थ है न दुःख मिलता है न सुख मिलता है इसीलिए दोनों ही अवस्था में समान रहना हे । यह तो साक्षी भाव से जीता है वह दोनों की समदृष्टि से देखता है।

यहाँ एक दृष्टांत से समझेंगे की दुःख का निरोध कैसे कर सकते हे

बुध किसी गांव में ठहरे थे उनके साथ चार भिक्षु भी थे वह लोग रात्रि में बांटे कर रहे थे किन्तु गौतम बुध्द शांत थे वे चारो अपनी बांटो में तल्लीन हो गए थे एक कह रहा था यह गांव का मार्ग बड़ा सुंदर हे दूसरा कह रहा था गाँव का मार्ग बड़ा खराब है । तीसरा कह रहा था यहाँ का सेठ बड़ा दानी हे तो चौथा कह रहा था नगरसेठ बड़ा कंजूस हे इस प्रकार की कई बातें हो रही थे। भगवान ने यह सब सुनकर चुप थे फिर उन सबको पास बुलाया और कहा कि भिक्षु होकर भी बाह्य मार्गों की बांटे करते हो। समय थोड़ा है और करने को बहुत है। बाह्य मार्गों पर कितने जन्मो से भटक रहे हो अब भी थके नहीं। अंतर्मार्गों की सोंचे सौन्दर्य तो स्वयं में है उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ मार्ग की बात करनी है तो आर्य अष्टान्गिक मार्ग की बात करो।
गौतम बुध्द ने आठ सूत्र दिए

भगवान बुद्ध का अष्‍टांगिक मार्ग :

  • सम्यक दृष्टि : इसका अर्थ है जैसा है वैसा ही देखना अपनी धारणाओं को बीच में लाकर नहीं देखना।
  • सम्यक संकल्प: इसका अर्थ है कि जो करने योग्य है वह करना और उस पर पूरा जीवन लगा देना। करना किसी अहंकार के कारण न हो वही सम्यक संकल्प।
  • सम्यक वाणी : जैसा है वैसा ही करना। अपनी मिलाकर, बदल कर नहीं जो बोलना है वही बोले ऐसा नहीं कि भीतर कुछ है और बाहर कुछ जितनी आवश्यकता हो उतना ही बोले)
  • सम्यक कर्मात : अर्थात वही करना जो ह्रदय करने को कहे। ऐसा नहीं कि कोई कहे वैसा कर दें। करें वही जो स्वयं को करने योग्य लगे। वही कर्म जिससे जीवन का सार मिले
  • सम्यक जीविका : रोटी तो कमानी ही है पर आजीविका सम्यक हो जीवन को परमात्मा की तरफ ले जाने वाली हो आजीविका ऐसी हो जिससे किसी का अहित न होता हो।
  • सम्यक व्यायाम : व्यायाम का अर्थ श्रम से समयक श्रम न तो आलस्य और न ही अति कर्मठता है जहाँ दौड रुके ही नहीं।
  • सम्यक स्मृति : स्मृति के चार रूप
    • कायानुपस्सना – स्मृति के चार रूप
    • कायानुपश्यना यानी शरीर के कार्य व चेतना के प्रति जागरुक रहना
    • वेदनानुपस्सना – वेदानुपश्यना यानी सुख व दुख के प्रति सचेत रहन
    • चित्तानुपस्सना – चितानुपश्यना यानी चित्त के राग-द्वेष को पहचानना
    • कायानुपस्सना, वेदनानुपस्सना, चित्तानुपस्सना, धम्मानुपस्सना, ये सब मिलकर विपस्सना साधना कहलाता है, जिसका अर्थ है, स्वयं को ठीक प्रकार से देखना। ये जानना की राग-द्वेष रहित मन ही एकाग्र हो सकता है।
  • सम्यक समाधि : अर्थात मन बंद हो जाए और होश भी बना रहे। असली बात जाग्रत रह कर आनंद को उपलब्ध होना, उसीक ओ बुद्ध ने सम्यक समाधि कहा है।

बुद्ध को मृत्यु का भय नहीं था, पर क्यों ?

क्योंकि बुद्ध मृत्यु से पूर्व हीं मृत्यु को देख चुके थे, उनका शरीर एक खोल मात्र था जिसमें कोई व्यक्तित्व नहीं था, सिद्धार्थ बहुत पहले हीं मर चुका था, और जो अविनाशी था वह बुद्ध हो गया ।

बुद्ध का अर्थ क्या हे ?

बुद्ध का अर्थ है जो जान गया हो। प्रश्न हे क्या जान गया हो?
उत्तर : यही कि चेतना शरीर और मन से अलग है।
बुद्ध हर कार्य चेतना के प्रकाश में करते हैं। वैसे देखा जाए तो जब हम खाते हैं, तो हमारी चेतना कहीं और होती है, और शरीर कहीं और। पर बुद्ध हमेशा वर्तमान में रहते हैं, यदि गौतम बुद्ध खा रहे हैं तो निर्विचार खाते हैं, क्योंकि बुद्ध के मन मे या तो विचार आते हीं नहीं अगर आते हैं तो बड़े अंतराल पर आते हैं। यदि आप एक मिनट तक भी निर्विचार हो पाए तो यह अंतराल धीरे धीरे बढ़ता जाएगा और एक समय के बाद विचार आने बंद हो जाते हैं।

अप्प दीपो भव :
जिसने देखा, उसने जाना ।
जिसने जाना, वो पा गया ।
जिसने पाया, वो बदल गया,
अगर नहीं बदला तो समझो कि
उसके जानने में ही कोई खोट था

 

FAQ For Budhha :

बुद्ध पूर्णिमा 2023 कब है?

साल 2023 में बुद्ध पूर्णिमा 05 मई 2023 शुक्रवार को मनाई जायेगी.

महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम क्या था?

गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था

गौतम बुद्ध ने कौन से धर्म की स्थापना की थी?

ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में गौतम बुद्ध द्वारा बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया गया | इन्हें एशिया का ज्योति पुंज कहा जाता है

गौतम बुद्ध का का जन्म कहाँ हुआ था?

गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल में कपिलवस्तु के समीप लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था

बुद्ध भगवान के माता का क्या नाम था?

गौतम बुद्ध की माता का (महामाया) मायादेवी था

गौतम बुद्ध के पिता का नाम क्या था ?

गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन था

बौद्ध धर्म का मूल मंत्र क्या है?

बुद्धं शरणं गच्छामि

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